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________________ १६९ -४७. १८.१०] महाकवि पुष्पदन्त विरचित पुरगामणयरसोहाणिवेसि मलययसुरहिइ तहिं मलयदेसि । पडिवक्खलक्खसंजणियतासु भहिलपुरि सिरिभद्दावयासु । काले जंतें कुलगयणचंदु घणरहु णामें जायउ णरिंदु । णीहारसरिसजसविमलकंति तह सञ्चकित्ति णामेण मंति। अत्थाणमज्झि उवविट्ठ राय एकहिं दिणि दाणालाव जाय । घत्ता-आहासइ रुद्दु भूरिसम्म जिणधम्मचुउ ।। सालायणमुंडु णामें अण्णु वि जासु सुउ ॥१७॥ १८ गोदाणभूमिदाणंतराई कच्चोलई थालई मणहराई। सोचण्णई रयणई अंबराई फलछेत्तई धवलहरई पुराई। हये गय रहवर पीणत्थणीउ कण्णा कलवीणालाविणीउ । वरदब्भपवित्तंकियकराह जो देइ णरेस दिएसराहं । सो कणयविमाणहिं विण्हुलोउ संप्रावइ माणइ दिव्वु भोउ । तं णिसुणवि पभणइ सञ्चकित्ति कहिं कामुउ कहिं परलोयवित्ति। कहिं किंबहु कहिं अंबयफलाई कहिं खरयरसिल कहिं सयदलाई। कहिं खीरु महुरु कहिं राइयाउ बंभणमईउ कुविवेइयाउ । मग्गई मंचउ वरभूमि हेमु । मग्गइ कुमारि मुंजइ सकामु । मुइ डिभइ उयरु हणंतु रडइ अण्णाणिउ भवसंसारि पडइ। पुरों, गांवों और नगरोंकी शोभाका निवेश है तथा मलयज सुरभिसे युक्त है, ऐसे मलय देशके भद्रिलपुर नगरमें लाखों प्रतिपक्षोंको संत्रासे उत्पन्न करनेवाली लक्ष्मी और कल्याणका घर, अपने कूलरूपी गगनका चन्द्रमा घनरथ नामका राजा हआ। उसका, नीहारके समान यश और विमलकान्ति वाला सत्यकोति नामक नया मन्त्री हुआ। एक दिन जब राजा अपने दरबारमें बैठा हुआ था, उसकी दानके बारेमें बातचीत हुई। घत्ता-जिन धर्मसे च्युत रोद्रभाव धारण करनेवाला भूरिशर्मा, और उसका शालायन मुण्ड नामका पुत्र, कहता है ।।१७| १८. गोदान भूमिदानादि, पानपात्र, सुन्दर थालियां, स्वणे, रत्न और वस्त्र, फल, क्षेत्र, धवल गृह और पुर, अश्व गज रथवर पीनस्तनी वीणाको तरह सुन्दर आलाप करनेवाली कन्याएँ, जो अपने श्रेष्ठ दर्भमुद्रिकासे अंकित हाथोंसे, हे राजन् ! ब्राह्मणेश्वरोंको देता है, वह स्वर्णविमानोंसे विष्णुलोक जाता है और दिव्य भोगका आनन्द लेता है । यह सुनकर सत्यकीर्ति कहता है-'कहाँ कामुक, और कहाँ परलोक वृत्ति ? कहां नीम और कहां आम्रके फल ? कहाँ कठिन शिला, और कहां कमलदल ? कहां सुन्दर खोर, और कहाँ राजिका? ब्राह्मणकी बुद्धि खोटे विवेकसे भरी हुई है । वह मंच, वरभूमि और सोना मांगता है, वह कुमारी मांगता है, और सकाम भोग करता है। पुत्रके मरने पर पेट पीटता हुआ रोता है और इस प्रकार अज्ञानी संसारमें भ्रमण करता है। ४. AP तासु । १८.१. P गय हय । २. A लावणीउ । ३. AP णरेसु । ४. AP संपावह। ५. AP मग्गइ धरु मंचउ - भूमि हेमु। २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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