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________________ ४६. १२. ३ ] महाकवि पुष्पवन्त विरचित १३५ णिद्धम्महं मासाहारियाहं रसलोलहं णियपरवेइरियाहं । तुहुं देव ण होसि सुसामि जाहं अजिणु वि अजिणहं चुकइ ण ताहं । महयालइ गाइ वि जासु वज्झ हो हो किं वेएं तेण मज्झ । एंव हि सुदयावर तुहुं जि सरणु तुह पायमूलि महुं होउ मरणु। बलदेवहं अग्गइ देहि तिण्णि तहु गणहर सुंयहर सहस दोण्णि । जे परमविराय वसंति रण्णि ते तहु मुणिसिक्खुव लक्ख दोण्णि । णहु सहसई पुणु चउरो सयाई सिक्खंति सत्थु गुरुसम्मयाई । अहँसहसइं सावहिलोयणाई अट्ठारहर्संहस णिरंजणाहं । ते चोइस विकिरियागुणीहिं वसुसहसई मणपजवमुणीहिं । घत्ता-पिंडीदुमु चमरइं दिव्वझुणि कुसुमवरिसु सियछत्तई ।। भामंडलु दुंदुहि सुरवरहिं जिणचिंधाई णिउत्तई ॥११॥ भयसहसई छसय विवाइयाहं छलहेउजाइकुलघाइयाहं । भणु असीयसहासई तिण्णि लक्ख संजमधारिणिहिं वहति दिक्ख । सावयह लक्ख गुत्तीसमाण ते अणुवयणारिहिं वयपमाण । हे देव, जो धर्महीन, मांसाहारी, रसलोलुप स्वपरके शत्रु हैं, आप उनके स्वामी नहीं हैं। जिन भगवान्से रहित जिन्होंने मृगचर्म नहीं छोड़ा, उनके आप स्वामी नहीं हैं। यज्ञमें जिसके लिए गाय वध्य है, हो-हो ! उस वेदसे मुझे क्या करना। हे सुदयावर, इस समय तुम्हीं मेरीशरण हो, तुम्ह रणोंके मलमें मेरी मत्य हो। उनके तेरानबे गणधर थे, दो हजार पूर्वधारी थे, जो परम विरक्त और वनमें निवास करते थे, ऐसे उनके दो लाख चार सौ शिक्षक मुनि थे जो गुरुसम्मत शास्त्रोंकी शिक्षा देते थे। आठ हजार अवधिज्ञानी थे। निर्विकार केवलज्ञानी ( आठ हजार सहित अट्ठारह हजार अर्थात् १० हजार) दस हजार, विक्रिया-ऋद्धिके धारक मुनि चौदह हजार, और मनःपयेय-ज्ञानी आठ हजार थे। - पत्ता-अशोक वृक्ष, चामर, दिव्यध्वनि, पुष्पवर्षा, श्वेतछत्र, भामण्डल, दुन्दुभि जिनवरके ये चिह्न देवताओं द्वारा कहे गये हैं ।।११।। छल जाति हेतु समूह का खण्डन करनेवाले सात हजार छह सौ वादी मुनि थे। तीन लाख अस्सी हजार संयम को धारण करनेवाली आर्यिकाएं दीक्षाको धारण करती हैं, तीन लाख श्रावक ११.१. P मंसाहार। २. P परवेरियाहं। ३. AP सुदयावरु। ४. A omits portion from सुयधर down to मुणि in 66; K writes it in marg। ५. A दहसहसई। ६. A adds after this; चउसहस ताह पुवंधराह। ७. A दोसहसई। ८. P जाणिय दहसहस । ९. P ते चउदस । १०. Aरिदुसयइ सुविक्किरिया । १२. १ A तासु; K तासु but corrects it to छसय । २. P जाउ। ३. A चरुरासीसहसई। ४. P तेहिं अणुवय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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