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________________ १२८ महापुराण धत्ता-इय पेक्खिवि रायहु राणियइ संतोसे आहासिउ ॥ तेण वि तहु मंगलदसणहु फलु पणइणिहि पयासिउ ॥३॥ सुओ देवि होही तुहं तित्थणाहो असामण्णसंपत्तिवित्तीसणाहो । दिही आगया देवया पंकयच्छी .हिरी कंति कित्ति सिरी बुद्धि लच्छी। णिहीसेण गेहम्मि छम्मासकालं णिहित्तं सुवण्णं सुवण्णं पहालं । चइत्तस्स पक्खंतरे चंदिमिल्ले सुहोहायरे वासरे पंच मिल्ले । रिसी पोमणाहो चुओ सोहमिंदो थिओ गम्भवासे पुलोमारिवंदो। सुपासाहिवे णिव्वुए संगएहिं समुछाणहो रंधकोडीसएहिं । णहाजक्खणिक्खित्तमाणिकरहिं पउण्णेहिं मासेहिं रामकएहिं । तओ पूसमासे पडतम्मि सीए सुहे सक्कजोयम्मि एयारसीए । पहूओ पहू पुण्णपाहोहमेहो जगाणं गुरू लक्खणुप्पत्तिगेहो। १. सपायालमग्गं सतारक्कसकं खणे कंपियं झत्ति तेलोकचक्कं । घत्ता-परतेउ ण कत्थइ विप्फुरइ अंधारउ णउ रेहइ ।। जम्मणु उग्गमणु वि मुवणयलि जिणदिणणाहह सोहइ ॥४॥ ___ पत्ता-यह देखकर रानीने राजासे सन्तोषपूर्वक कहा। उसने भी अपनी प्रणयिनीसे मंगल स्वप्न देखनेके फलका कथन किया ॥३॥ हे देवी, तुम्हारा असामान्य सम्पत्तियों और प्रवृत्तियोंका स्वामी तीर्थकर पुत्र होगा। कमल नेत्रोंवाली धृति, ह्री, कान्ति, कीर्ति, श्री, वृद्धि और लक्ष्मी देवियां आ गयीं। कुबेरने उसके घरमें छह माह तक प्रभासे युक्त सुन्दर रंगके स्वर्णकी वर्षा की। चेत्रशुक्ल शुभयोगोंके आकर, पांचवींके दिन ऋषि पद्मनाथ सौधर्म इन्द्रच्युत हुआ और इन्द्रके द्वारा संस्तुत वह गर्भवासमें आकर स्थित हो गया। सुपार्श्वनाथके निर्वाण प्राप्त करनेके नौ करोड़ सागर समय बीतनेपर, जिनमें यक्षके द्वारा आकाशसे रत्नोंकी वर्षा की गयी है ऐसे नौ माह सम्पूर्ण होनेपर, पूष माहमें शुक्लपक्षकी एकादशीके दिन शुभ इन्द्रयोग और ज्येष्ठा नक्षत्रमें पुण्यरूपी जलोंके मेघ, विश्वगुरु लक्षणोंकी उत्पत्तिके घर प्रभु उत्पन्न हुए। पातालमार्गसे लेकर तारों, सूर्य और इन्द्र के साथ एक क्षणमें त्रिलोकचक्र कांप उठा। धत्ता-कहीं पर भी दूसरेका तेज नहीं चमकता था और न अन्धकार ही कहीं शोभित था; जिनरूपी दिननाथ (सूर्य) का जन्म और उदय शोभित होता है ॥४॥ ११. पणइणिहो। ४.१. P असावण्ण। २. A णिहत्तं। . A चंदमिल्ले । ४. A पुणोमारिवंदो। ५. A सुपसाहिए । ६. P पुण्णयंभोहमहो । ७. P जयाणं । ८. P सपायालसग्गं सतारं ससक्कं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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