SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -४५. १२. ११ ] __महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता-तहु धुवसिर्वपुरगामिहि णरवइ सिरिहरसामिहि ।। जम्मभवणसमभग्गउ दिढु कमकमलेहिं लग्गउ ॥११॥ १२ णिवदारणि मारणि साईणिय णियतणयहु पणयहु मेइणिय । लहु ढोयवि जोयवि सुयमइउ कणयप्पहु दप्पहु पावइउ । पडिवण्णउं सुण्णउं तेण वणु चलसंदणु णंदणु गउ भवणु। सोमप्पह सुप्पह तासु पृर्य किं अक्खमि पेक्खमि णाई सूये। जिरवण्णु सुवण्णु ताहं तणउ लद्धण्णइ भण्णइ किं म[उ। ससिअक्कचकचंचलपयहिं दियहेहिं रहेहिं व संगयहिं । सई सासणि आसणि थियउ जहिं पहसियमुहु तणुरुहु थैविउ तहिं । विण्णविवि विवि ओलग्गियउ सिरियरु सिरिहरु मग्गियउ । णिग्गंथहु पंथहु खणु ण चुउ सो पोमप्पहुँ रिसिणाहु हुउ । घत्ता-सयलहं जीवह मित्तउ हेमधूलिसमचित्तउ ।। णियदेहे वि णिरीहउ वणि णिवसइ मुणिसीह उ ॥१२॥ पत्ता-जन्मभवके श्रमको नष्ट करनेवाला वह राजा शाश्वत शिवपुरके गामी उन श्रीधर स्वामीके चरणोंमें पूरी दृढ़तासे लग गया ॥११॥ नृपदारिणी, मारिणी, शाकिनी, भेदिनी आदि विद्याएं और धरती अपने प्रिय पुत्रको देकर, शुभमति दर्पको आहत करनेवाला वह कनकप्रभ प्रजित हो गया। उसने शून्य वन स्वीकार कर लिया। चंचल है रथ जिसका ऐसा पुत्र अपने घर गया। चन्द्रमाके समान कान्तिवाली सुप्रभा उसकी प्रिया थी। उसका क्या वर्णन करूं। मैं उसे पुष्पमालाके समान देखता हूँ। स्वर्णनाभ उन दोनोंका पुत्र था जो मनुष्योंमें सुन्दर था। उन्नति प्राप्त करनेपर (बड़े होनेपर ) उसे मनुष्य क्या कहा जाये ? जिनके चन्द्रमा और सूर्यरूपी चक्र पैर हैं ऐसे दिनरूपी रथोंके निकल जानेपर, जहाँ राजा स्वयं शासन और सिंहासनपर स्थित था, वहां उसने प्रहसित मुख अपने पूत्रको स्थापित कर दिया। विनय और प्रणाम कर उसने सेवा की, श्रीलक्ष्मीके कर्ता पद्मनाभ श्रीधरसे व्रतकी याचना की। निर्ग्रन्थ पथसे वह एक क्षण च्युत नहीं हुआ। इस प्रकार वह पद्मनाभ मुनि हो गये। पत्ता-वह समस्त जीवोंके मित्र थे, स्वर्ण और धूलमें समान चित्त रखनेवाले थे। अपने ही शरीरके प्रति निरीह वह मुनिसिंह वनमें निवास करने लगे ॥१२॥ ९.P पुरिगामिहि । १०P जम्ममरणसम । ११. कमलहो लग्गउ। १२. १. P णिवमारणि । २. मारणि । ३. A सइरिणिय । ४. AP पिय। ५. AP सिय । ६. A णाहत णउ । ७. P मणउ । ८. A थियउ; P णिहिउ । ९. A णविउ । १०.AP व सिरिहरू । ११. P खणिण कउ । १२. A पोमणाह; Pपउमणाहु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy