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________________ -४५. २. १० ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित सुचतचंगवियारणासं सदित्तियाभक्खरभावहारं पुरंदेरालोयणजोग्गगत्तं णिवारियप्प वह सेलपायं खर्गिद देविंद मुणिदधेयं भणामि तस्सेव पुणो पुराणं घत्ता - अमलइ अत्थरसालइ अगसिंगारवियारणासं । भवोहसंर्भूइभयावहारं । समुज्झियाहम्मदुपं कगत्तं । फणिचूडामणिघपायं । नमामि चंदरपणामधेयं । गणेसगीयं पवरं पुराणं । वयणणवुप्पलमालइ ॥ अट्ठमु जिणवरु पुज्जमि पडेसे पुण्णु आवज्जमि ||१|| २ भूभाइ सुसहिल्लि । पुक्खरवरद्धमि । विल्लमंदरहु | पच्छिमविदेहम | देसे सुगंधमि । सिरपुरवरे विs | णामेण सिरिसेगु । करिवरहु णं करिणि । चितवइ थिरबाहु | को देउ संभरमि । उत्तरोलि दीवे सिद्धम जलभरियकंदरहु सुरलोय सोहम्म araणसमिद्धम्मि छक्खंडधरणिवइ उद्भूरिरेणु सिरिकंत तहु घरिणि सुरहिउ णरणाहु किं करमि कहिं चरमि Jain Education International ११३ १५. १० विशेष पीड़ा देनेवाले हैं, जिनका मुख सुसत्य और तत्त्वसे उपलक्षित है, जो कामशृंगार के विचारोंका नाश करनेवाले हैं, जो अपनी दीप्तिसे सूर्यप्रभाका अपहरण करनेवाले हैं, जिनका शरीर इन्द्रके लिए दर्शनीय है, जिन्होंने अधर्मके दुष्पंकका गतं छोड़ दिया है, जिन्होंने आत्मज्ञानके लिए पर्वतसे नीचे गिरनेका विरोध किया है, जिनके चरण नागराजके चूड़ामणिसे घिसे जाते हैं, जो खगेन्द्रों, देवेन्द्रों और मानवेन्द्रोंके द्वारा ध्येय हैं- मैं ऐसे चन्द्रप्रभ स्वामीको नमस्कार करता हूँ और फिर उन्हींका पुराण कहता हूँ जो कि पहले गणधरोंके द्वारा कहा गया था । ५ घत्ता - स्वच्छ अर्थोंसे रसाल वचनरूपी नवकमलोंकी मालासे आठवें जिनवरकी में पूजा करता हूँ और प्रचुर पुण्यका उपार्जन करता हूँ || १ || २ मानुषोत्तर पर्वतसे सुशोभित सुखद भूभागवाले प्रसिद्ध पुष्कर द्वीपमें, जिसकी गुफाएँ जलसे पूरित हैं ऐसे पूर्व मन्दराचलके पश्चिम विदेहमें धनकणसे समृद्ध सुगन्धि देशके श्रीपुर नगर में छह खण्ड धरतीका अधिपति, शत्रुओंकी धूल उड़ानेवाला राजा श्रीषेण था । श्रीकान्ता उसकी गृहिणी थी, मानो करिवरकी हथिनी हो । पुत्रसे हीन स्थिरबाहु राजा विचार For Private & Personal Use Only ७. AT भाविहारं । ८ A संभूइयभावहारं । ९. A पुरंदरोलोयण जोगगत्तं; P पुरंदरालोयणजोयतं । १०. चिट्ठायं । ११. A P पवरं । २. १. A P मणसुत्तरोइल्लि । १५ www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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