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________________ -४४. ६.१० ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित वड्ढ़तेण विसाहारिक्खें सुमुहुत्तेणुप्पाइयसोक्खें। गयरूवें विम्हावियसिढिहि हुउ गब्भावयारु परमेट्ठिहि । घर आवेप्पिणु खणि सुत्तामें गुरु गुरुयणु अंचिउ जसरामें। गठ देवाहिउ देवावासह पय वंदैवि भावे देवेसहु । पत्ता-णरणाहहु केरइ हरिसजणेरइ णव मासइं तूसवियजणु ॥ जंबुण्णयधारहिं दुहमलहारहिं घरि वुट्टउ वइसवणु घणु ॥५॥ ६ जयडिंडिमि दंडेण समाहइ णिव्वुइ पउमप्पहि पउमाहइ । सायरसमहं पमाणे लइयह णवसहासकोडिहिं गय जइयहं । कालपमाणे संखहि आयउ। तइयहुं तहिं वइसाहहु जायउ। पसवणु देवहु जाई सुहासिइ बारसिवासरि जेट्ठाभूसिई। सामरु सच्छरु सधउ सवारंणु पुणु संप्राइउ सो हरिवाहणु। अम्महि अवरु डिंभु संजोइवि णिउ हरिणा जगगुरु उच्चाइवि । सिंचिउ सुरगिरिसिरि सुररायहि मुहवियलियसिवणिवसंघायहिं । सुहतणुपासु सुपासु पकोक्किउ . सयमहु थोत्तु करंतउ संकिउ । पुजिवि वंदिवि णिउ सणिकेयहु पहु करपंकइ णिहियउ तायहु । देउ पियंगुपसवसरिसप्पहु दोधणुसयपमाणु माणावहु । षष्ठीके दिन विशाखा नक्षत्रके बढ़नेपर सुख उत्पन्न करनेवाले शुभमुहूर्तमें जिन्होंने सृष्टिको विस्मयमें डाल दिया है, ऐसे परमेष्ठीका गजरूपमें अवतार हुआ। यशसे सुन्दर इन्द्रने एक क्षणमें आकर श्रेष्ठजन गुरुकी पूजा की। भावपूर्वक देवेशके पैरोंकी वन्दना कर देवेन्द्र अपने देवगृह चला गया। घत्ता-हर्ष उत्पन्न करनेवाले राजाके घरमें नौ माहतक जिसने जनोंको सन्तुष्ट किया है ऐसा कुबेररूपी मेघ, दुखमलको हरण करनेवाली स्वर्णधाराओंसे बरसा ।।५।। ६ विजयरूपी दुन्दुभिके उण्डेसे आहत होनेपर, रक्तकमलके समान आभावाले पद्मनाथके निर्वाण प्राप्त करनेपर जब नौ हजार करोड़ सागर प्रमाण समय बीत गया तथा कालप्रमाणमें एक शंख हुआ तब विशाखा नक्षत्रका उदय हुआ। जेठ शुक्ल द्वादशीके दिन अग्निमित्र नामक शुभयोगमें देवका जन्म होनेपर देवेन्द्र अपने देवों, अप्सराओं, ध्वजों और गजोंके साथ फिर वहां पहुँचा। माताको दूसरा मायावी बालक देकर, इन्द्रके द्वारा विश्वगुरुको ऊँचा कर, ले जाया गया। शब्दों (स्तुति वचनों) के साथ, जो जलघट छोड़ रहे हैं ऐसे देवेन्द्रोंने सुमेरुपर्वतपर उनका अभिषेक किया। दोनों पार्श्वभाग सुन्दर होनेसे उन्हें सुपावं कहा गया। स्तुति करते हुए इन्द्र शंकामें पड़ गया। पूजा और वन्दनाके बाद, उन्हें ( सुपार्श्व को ) अपने घर ले जाया गया, और उन्हें पिताके हाथमें रख दिया गया । सुपाश्वदेव प्रियंगु पुष्पके समान आभावाले थे, मानका नाशक उनका शरीर दो सो धनुष प्रमाण था। २. A P विभाविय । ३. A वंदिवि; P वंदिय । ४. P वइसवणघण । ६. १. P डंडेण । २. A चंदसुहासिइ। ३. A जेठ्ठपभूसिह । ४. सवाहण। ५. A P संपाइउ । ६. P सणिकेवह। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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