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________________ - ४३. ७. ८ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित हुआ परमेसु सुहाई जणंतु पुणाइड जीय जिनिंद भणंतु पुरं पणवेवि णिवासि विसेवि जिर्णम्महि हत्थ परो सिसु देवि पवज्जियढेकु कमक्कमियंक ओ गहमंडलु लंधिवि तांव पत्ता - तहिं मेरुसिंग संणिहिउ जिणु पाणिउ सुरयणु आणइ || कल्हारपिहियघड सहसकरु सई पुलोमिपिड पहाणइ ||६|| वियाणिवि हाणिवि न्हाणविहीर पणेचिवि अग्गइ बालु चलेहिं समप्पिड मायहि पंकयणेत्तु गयामय भोइ सवासपएसु वहु सक्कंवि तासु कयाई सरासणयाहं संरीरपमाणु समं णरडिंभयणेण रमेवि वयंकस मंकित सुण्णचउक्क असंखसहासु महामहवंतु । हं तुरएहिं गएहिं पिहंतु । सुहीहियवंतरि भक्ति करेवि । जगतयणाहु णवेवि लएवि । णिओइड वारणु चल्लिउ सक्कु । सिलाइ सिंचणमे इणि जांव । ७ पुणो अवयारु करेवि महीइ । सुरेहि गुणालकुलेहिं । सुलक्खणव जण रंजियगत्तु । पवडिउ तायहरम्मि जिणेसु । सद्ध णिउत्तई दोणि सयाई । रुईइ विरेहइ णं णवभाणु । इसीसमपुव्वहं लक्ख गमेवि । इपि दिहि पमाणु पटुक्क । Jain Education International ९५ १० तेरस के दिन त्वष्ट्रायोगमें परमेश्वर सुखोंको उत्पन्न करते हुए उत्पन्न हुए । असंख्य देव और पांच कल्याणकार्य को करनेवाला इन्द्र फिर आया, 'हे जिनेन्द्र जीवित रहो' यह कहते हुए और गजों तथा अश्वोंसे आकाशको आच्छादित करते हुए, फिर प्रणाम कर और घर में स्थापित कर, बन्धुजनोंके हृदय के भीतर भक्ति कर जिनमाताके हाथमें दूसरा शिशु देकर, त्रिलोकनाथको प्रणाम कर और लेकर, जिसपर ढक्का बज रहा है, और जो सूर्यका अतिक्रमण करनेवाला है, ऐसे गजको उसने प्रेरित किया, और इन्द्र चला । ग्रहमण्डलका उल्लंघन करता हुआ वह वहाँ पहुँचा जहाँ जिन भगवान्की अभिषेकभूमि पाण्डुशिला थी । धत्ता - उस सुमेरु पर्वतपर जिन भगवान्‌को स्थापित कर दिया गया । सुरसमूह जल लाता है, कमलों से आच्छादित घड़े जिसके हजार हाथों में हैं ऐसा इन्द्र उनका अभिषेक करता है ||६|| ७ १५ जानकर और स्नानविधिसे स्नान कराकर पुन: धरतीपर अवतरण कर, बालकके आगे नृत्य और स्तुति कर गुणाल कुलके देवोंने लक्षणों और सूक्ष्मव्यंजनोंसे शोभित शरीर कमलनयन बालक माता के लिए सौंप दिया। देव अपने-अपने घर चले गये। जिनेश अपने पिताके घर में बढ़ने लगे । उनकी लीलाओंका में वर्णन नहीं कर सकता। उनके शरीरका प्रमाण ढाई सो धनुष ऊँचा था । कान्तिमें वह ऐसे शोभित थे मानो नवसूर्य हों । इस प्रकार मानव बालकोंके साथ रमण करते हुए, उनके सात लाख पचास हजार पूर्व समय बीत गया। इतने दिनोंका मान (प्रमाण) पूरा For Private & Personal Use Only ७. AT सुहासु । ८ APT जिणंबहि । ९. A ढक्क । १०. A कमक्कमियंकु । ७. १. A P read a as b and basa २. A P बाहुबलेहि । ३ AP गुणाण । ४. A P° विज । ५. Aण वण्णहं सक्कमि; P ण वण्णवि सक्कमि । ६. AP सरीरु पमाणु । www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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