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________________ -४३. ५. १४] महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता-अण्णहिं वासरि रायाणियइ णिसिविरामि उवलक्खिय ।। पासायतेलिमतलसुत्तियइ सिविणयमाल णिरिक्खिय ॥४॥ सुहाहिमसारयणीरयवण्णु गलंतमओलकवोल करिंदु खरेहिं खुरेहिं धरग्गु दलंतु विसेसविसेसु विसाण धुणंतु गिरिंदगुहाकुहरंतविणित्तु लयादललोलललावियजीहु णिसावइसेय दिसागयकंति अणेयपसूयकरंबयगुत्थु णिहित्ततमीतमु णिम्मलु चंदु पैमत्त रमत हंति तरंत महुप्पल कुंभलएसु णिसण्ण अलीरेवफुल्लियपोमरयालु णिमजणकीलणंलीण गइंदु पदंसियभीयरमीणरउद्दु पईहरपाणि झलज्झलकण्णु । णियच्छिउ जंगमु णाई धरिंदु। बलाल गेविंद बलेण खलंतु । णियच्छिउ संमुहु एंतु डरंतु । रुसारुणदारुणदूसहणेत्तु । णहालिफुरंतु णियच्छिउ सीहु । णियच्छिय लच्छि सरोवरि हंति । णियच्छित दामयजुम्मु णहत्थु । णियच्छिउ तिव्वु तवंतु दिणिंदु । णियच्छिय मच्छ चलंत वलंत । णियच्छिय कुंभ वरंभपउण्ण । विहंगसिलिंबयचक्खियणालु । णियच्छिउ तामरसायर रुंदु । णियच्छिउ वारिरउद्दु समुद्दु । १० पत्ता-दूसरे दिन रात्रिके अन्तिम प्रहर में प्रासादके अन्तिम तलमें सोते हुए रानीने स्वप्नमाला देखी ॥४॥ ५ जो सुधा, चन्द्र और शरदकालीन मेघके समान सफेद रंगका है, जिसकी सूंड़ लम्बी है, जो हिलते हुए कानोंवाला है, और जिसके कपोलभागसे मद झर रहा है ऐसा गजराज देखा, जो मानो जंगम पहाड़ हो । अपने तीव्र खुरोंसे धरतीके अग्रभागको रौंधता हुआ, बलशाली, बलसे स्खलित होता हुआ, सींग धुनता हुआ, सामने आता हुआ, गरजता हुआ विशेष वृषभेन्द्र देखा। पहाड़ोंकी गुफाओं और कुहरोंमें रहनेवाला, क्रोधसे अरुण और भयंकर नेत्रवाला लतादलके समान चंचल जीभको हिलाता हुआ, नखावलीसे भास्वर सिंह देखा। चन्द्रमाको तरह श्वेत और दिग्गजोंको कान्तिवालो लक्ष्मीको सरोवरमें स्नान करते हुए देखा। अनेक पुष्पसमूहोंसे गूंथी हुई मालाओंका युग्म आकाशमें देखा। रात्रिके अन्धकारको नष्ट करनेवाला निर्मल चन्द्र देखा। तीव्रतम तपता हुआ सूर्य देखा, प्रमत्त रमण करतो हुई, सरोवरमें तैरती हुई, चलती मुड़ती हुई मछलियां देखीं। कुम्भमालामें रखा हुआ मधु कमलोंसे ढका हुआ उत्तम जलसे परिपूर्ण घड़ा देखा, जिसमें डूबने और क्रोड़ा करनेमें गजेन्द्र लोन है, जो भ्रमरोंके शब्द और पुष्पित कमलोंके रजसे युक्त है, जिसमें हंसोंके बच्चे मृगाल खा रहे हैं, ऐसा विशाल सरोवर देखा। जो दिखाई देनेवाले ९.Aतलि सुत्तियह; Pतले सुत्तिइ । ५. १. A कवोल । २. P गइंद। ३. A P विसेसु विसेसु । ४. A P रडंतु । ५. A P गुंथु । ६. A reads this line after चक्खियणाल below. ७. A भमंतु । ८. A P दहति । ९. AP अलीरउ । १०. A कीलणसील: P कोलणणील। ११. P रसायरु। १२. A P रवदु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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