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________________ महापुराण [४२.६.१ पाविऊण पट्टणं गंपि रायमंदिरं बंधुचित्तविब्भमं वजपाणिणा पुणो अंकए णिवेसिओ कुंभकंठबंधरो पत्तओमरोयलं तम्मि देहमाणवो णाहओ णिरूविओ पावतावहारिणा देवएहिं हाणिओ आलयं पुणाणिओ ते जयम्मि धण्णया मंडणेहिं राइओ जोइएहिं झाइओ अप्पिओ विपर्कए वजिणा जिणेसरो संसिऊण तं णिवं देवि तिप्पयाहिणं। णिम्मिऊण णिब्भरं। अण्णबालसंकम। वंदिओ सयं जिणो। सूहवो सुहासिओ। चोइओ ससिंधुरो। पंडुरं सिलायलं। तेण दिव्वमाणेवो। भत्तएहिं भाविओ। दुद्धरासिवारिणा। पुप्फगंधमाणिओ। जेहिं सो वियाणिओ। णाणिणो संउणिया। किंणरेहिं गाइओ। अस्थिणस्थिवाइओ। माउपाणिपंकए। जीयलोयणेसरो। कोसिओ गओ दिवं। नगरको पाकर, उसकी तीन प्रदक्षिणा कर राजमन्दिर में जाकर, बन्धुओंके चित्तको विभ्रममें डालनेवाले कृत्रिम बालकका पूर्ण रूप निर्मित कर, इन्द्रने स्वयं जिनको प्रणाम किया, और सुभग सुभाषित उन्हें अपनी गोदमें ले लिया। गण्डस्थल और कण्ठसे सुन्दर अपने गजको उसने प्रेरित किया और अमरालय पाण्डुशिलापर पहुंचा। देहश्रीसे अभिनव दिव्य मानवनाथको उसने स्थापित किया। और भक्तोंने उसकी भक्ति की। देवोंने पापतापका हरण करनेवाली दुग्धराशिके जलसे स्नान कराया और पुष्पगन्धसे सम्मान किया। वे पुनः उन्हें घर ले आये, कि जिनके द्वारा वे ले जाये गये थे। जगमें वे ज्ञानी और पुण्यात्मा धन्य हैं जो अलंकारोंसे अलंकृत हैं, किन्नरोंके द्वारा जिनका गान किया जाता है, योगियोंके द्वारा जिनका ध्यान किया जाता है; जो स्याद्वादके प्रतिपादक हैं। फिर माताके निर्मल करकमलमें इन्द्रने जोवलोकके ईश्वर जिनको दे दिया। और राजाकी प्रशंसा कर इन्द्रलोकको चला गया। ६.१. A वज्जपाणिणो । २. AP'मरालयं but A corrects it to सुरालयं; gloss in K अमराचलं । ३. P सिलालयं । ४. A माणवे । ५. A माणवे । ६. A णाहए । ७. A पुणो णिओ।८ A समुण्णया; P सउण्णया। ९. A विकंपए । १०. समाउपाणिपंकए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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