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________________ -४२. २.९] महाकवि पुष्पदन्त विरचित महिलाकुमई मोत्तं कुमई। इच्छियसुमई णमिउं सुमई। तस्स पवित्तं वोच्छं वित्तं। घत्ता-जिह ते लइँउ व्रउ जिह हुयउ अणुत्तरि सुरवरु ।। जिह जायउ सुमइ तिह कह मि समासइ वइयरु ॥१॥ जलवरिससीयए दीवए बीयए कुंभयेण्णेहिं णिक्खित्तमहिबीयए। भमियमत्तंडए तमपडलखंडए फुल्लतरुसंडए धोदईसंडए । तरुणणरमिहुँणपरिवड्डियसणेहए पुर्वसुरसिहरिणो हरिदिसिविदेहए । णडियबरहिणणडे सरिवरुत्तरतडे पोमरयरासिपिंजरियकुंजरघडे । दुक्खणिग्गमणरइरमणवणसिरिसही जत्थ तत्थत्थि पिहु पुक्खलावइ मही। ५ तम्मि गच्छंतसामंतभडसहयरी सेयसउहावली पंडरिंगिणि पुरी। घुसिणरससिंचिए हसियगयणंगणे मोत्तियकणंचिए प्रंगणे प्रंगणे । अमलिणा सणेलिणा जत्थ जलवाविया कुररकारंडकलहंससंसेविया । मंदिरे मंदिरे सइरेगइ गोमिणी हम्मई मद्दलो गच्चए कामिणी । महिमाका पालन करनेवाले, धरती और लक्ष्मीको छोड़नेवाले हैं। जिन्होंने महिला पृथ्वीकी बुद्धि और कुमतिको छोड़ने के लिए सुमतिको इच्छा की है, ऐसे सुमतिनाथको मैं प्रणाम करता हूँ और उनके पवित्र वृत्तान्तको कहता हूँ। पत्ता-जिस प्रकार उन्होंने व्रत लिया, जिस प्रकार वह अनुत्तर स्वर्ग विमान में उत्पन्न हुए और जिस प्रकार सुमति नामक तीर्थकर हुए, वह सारा वृत्तान्त मैं संक्षेपमें कहता हूँ ॥१॥ जो जल वर्षासे शीतल हैं तथा जिसमें घड़ोंके द्वारा धरतीमें बीज बोये जाते हैं, जिसमें अन्धकारके समूहको नष्ट करनेवाला सूर्य परिभ्रमण करता है और वृक्षसमूह खिला हुआ है, ऐसे धातकी खण्ड द्वीपके पूर्वमें सुमेरुपर्वतकी पूर्वदिशामें, जिसमें तरुण नर जोड़ोंमें स्नेह बढ़ रहा है, ऐसा विदेह क्षेत्र है । जिसमें मयूररूपी नट नृत्य करता है और जिसमें कमलोंके परागसमूहसे हस्तिघटा पिंजरित (पीली) है, सीता नदीके ऐसे उत्तर तटपर विशाल पुष्कलावती भूमि है, जो दुःखको दूर करनेवाली एवं रतिरमण करानेवाली वनलक्ष्मीकी सखी है। उसमें चलते हुए भट सामन्तोंसे सुखकर एवं श्वेत चूनोंके प्रासादोंवाली पुण्डरीकिणी नामकी नगरी है। जिसके केशर रससे सिंचित गगनांगनको हंसनेवाले मुक्ताकणोंसे अंचित आंगन-आँगनमें कमलों सहित निर्मल बावड़ियां हैं। घर-घरमें स्वैरगामिनी लक्ष्मी है। मृदंग बजाया जाता है और कामिनी नचायो जाती है। जहां ७. A लयउ वउ; P लइउ वउ । २. १. A P कुंभयणेहिए खित्त । २. A घायई । ३. A P°णरमिहुणए वढिय । ४. A हरिदिस। ५. A Pसिहरिए । ६. A सउहाउली।७. A P पंडरिकिणि । ८. A P पंगणे पंगणे । ९. A समलिणा । १०. A P कलहंसजुयसेविया । ११. A सई रमइ but gloss स्वेच्छाचारिणी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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