SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महापुराण [ ४१.८.१ कयविहिपरियम्म छिण्णदुक्कामजम्मं संई सिरिअरहतं तम्मि औरोहिउ तं । पिवई दसदिसासु सेयभिंगारणीरं कुणइ सुरवरिंदो सिद्धमंताहियारं ॥१॥ बहदसणविसाले कक्खणक्खत्तमाले चलियचमरलीले संठियं पीलबाले। पविहरममराणीसेवियं देववंदं जिणण्हवणविसेसे वाहरामोमरिंदं ॥२॥ जलियकविलवालं भासुरालं करालं दिसि पसरियजालं धूमचिंधेण णीलं । पयपहयउरब्भं भाविणीभावियासं जिणण्हवणविसेसे वाहरामो हुयासं ॥३॥ जलयपडलकालं णिद्धणीलं व सेलं महिसमुहसमीरुड्डीण जीमूयमालं । करवलइयदंडं 'छाहिसंसत्तसंतं जिणण्हवणविसेसे वाहरामो कयंतं ॥४॥ भैसलगरलमालाकालरोमं तुरंत अरुणणयणछोहं रिछमावाहयंतं । जुवइजणियकामं ''साहिरामं करामो जिण्णहवणविसेसे णेरियं वाहरामो ।।५।। करिमयरणिविटुं हारणीहारतेयं धुर्वधवलधओहं कामिणीए समेयं ।। वरुणममरसारं माणसे संभरामो जिणण्हवणविसेसे सायरं वाहरामो ।।६।। तरुपहरणपाणि 'वौइसंदिण्णरायं सुरहिपरिमलंगं माणिणीजायरायं । जिन्होंने विधाताके परिकर्मको किया है, और पापकर्म और जन्मका नाश कर दिया है, ऐसे श्री अरहन्तको उसपर आरोहित कर दिया। दसों दिशाओंसे श्वेत भंगारपात्रोंका जल गिरता है; सुरवरेन्द्र सिद्धमन्त्रोंका अभिचार करता है। बहतसे दांतोंसे विशाल, वरत्रारूपी युक्त, चलते हुए चमरोंकी लीला धारण करनेवाले बाल ऐरावत गजपर उन्हें रख दिया। जिन भगवान्के अभिषेक-विशेषमें मैं, ( कवि पुष्पदन्त ) वज्रको धारण करनेवाले, इन्द्राणीके द्वारा सेवित, देवोंके द्वारा वन्दनीय, अमरेन्द्रको बुलाता हूँ। जिसके प्रज्वलित कपिल केश हैं, भास्वर भयंकर, दिशाओंमें जिसका जाल फैला हुआ है, धूमचिह्नोंसे नीला, अपने पैरसे मेषको आहत करनेवाला, अपनी पत्नीके द्वारा जिसका मुख देखा गया है, ऐसे अग्निदेवको मैं जिनेन्द्र के अभिषेकविशेषमें बलाता है। जो मेघपटलके समान श्याम है. शैलके समान स्निग्ध और महिषके मुखके पवनसे मेघमाला उड़ रही है, जिसके हाथमें दण्ड झुका हुआ है, अपनी भार्या, छायामें जिसका चित्त आसक्त है, ऐसे यमको मैं जिनके अभिषेक-विशेष में बुलाता हूँ। भ्रमर और गरलमालाके समान जिसके रोम काले हैं, जो लाल आंखोंकी कान्तिवाला है, रोछपर सवारी करता है, युवतीजनमें जो काम उत्पन्न करता है, ऐसे नैऋत्यको मैं अनुरागयुक्त करता हूँ और जिनेन्द्र के अभिषेक-विशेषमें उसे बुलाता हूँ। जो गजाकार मगरपर अधिष्ठित हैं, जो हार-नीहारकी तरह स्वच्छ हैं, हिलती हुई धवल ध्वज-समूहसे युक्त हैं, कामिनीसे सहित हैं, ऐसे अमरोंमें श्रेष्ठ वरुणकी मैं याद करता है और जिनेन्द्र के अभिषेक-विशेषमें उन्हें सादर बुलाता है। वृक्ष ही जिसके प्रहरण और हाथ हैं, वातप्रमी मृगीमें जिसका अनुराग है, सुरभिपरिमल जिसका शरीर है, ८. १. A°कुक्कम । २. A सयसिरि । ३. AP°अरिहंत । ४. A आराहिऊणं । ५. P खिवह । ६. A ममराणीसंजुयं देवदेवं; P°ममरेहिं सेवियं देवविदं । ७. P अग्गिवालं पहालं। ८. P°णिदणीलालिसेलं । ९. A वडइय। १०. A छाहिसंसत्तगत्तं; P छाहिसंसत्तवत्तं । ११. P कसणभसलमालाकार। १२. P साहिरामो। १३. A°मयरणिविद्धं । १४. A P धुयधवल । १५. A P वायसं। १६. P कामिणिजाय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy