SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी अनुवाद ९ अकलंक (जैनाचार्य), कपिल ( सांख्यदर्शनके प्रवर्तक) कणयर ( कणाद - वैशेषिक दर्शनके प्रवर्तक) के मतों, द्विज ( वेदपाठी - कर्मकाण्डी), सुगत ( बौद्ध ) और इन्द्र ( चार्वाक ) के सैकड़ों नयों, दत्तिल और विसाहिलके द्वारा रचित संगीतशास्त्र और भरत मुनिके द्वारा विचारित नाट्यशास्त्रको मैंने ज्ञात नहीं किया। पतंजलिके भाष्यरूपी जलको मैंने नहीं पिया । निर्मल इतिहास और पुराण, भावाधिप भारवि, भास, व्यास, कोहल, कोमलवाणीवाले कालिदास, चतुर्मुख, स्वयम्भू, श्रीहर्ष, द्रोण, कवि ईशान और बाणका भी मैंने अवलोकन नहीं किया । न मैंने धातु, लिंग, गण, समास, न कर्म, करण, क्रियानिवेश, न सन्धि, कारक और पद समाप्तिका, और न ही मैंने एक भी विभक्तिका ज्ञान प्राप्त किया। शब्दोंके धाम, सिद्धान्त ग्रन्थ धवल और जयधवल आगमोंको भी मैंने नहीं समझा। जड़ताका नाश करनेवाले कुशल रुद्रट और उनके अलंकारसारको भी मैंने नहीं देखा । न मैं पिंगल प्रस्तार के समुद्र में पड़ा । और न ही कभी यशसे चिह्नित लहरोंसे सिक्त सिन्धु मेरे चित्तपर चढ़ा । और न मैंने कलाकौशलमें अपने मनको लगाया । मैं बेचारा जन्मजात मूर्ख हूँ । चसे आच्छादित वृक्ष ( ठूंठ ) -सा मनुष्य के रूपमें घूम रहा हूँ । महापुराण अत्यन्त दुर्गम होता है, घड़े से समुद्रको कौन माप सकता है ? देवों, असुरों और गुरुजनोंके लिए सुन्दर मुनियों एवं गणधरोंने जिस महापुराणकी रचना की है, मैं भी भक्तिभावसे भरकर उसकी रचना करता हूँ । क्या आकाशमें भ्रमरके द्वारा न घूमा जाये ( क्या वह भ्रमण न करे ) ? यह विनय मैंने सज्जन लोगोंके प्रति को है, दुर्जनोंके मुखपर तो मैंने स्याहीको कूंची ही फेरी है । ११०.१० ] घत्ता -- घर घरमें घूमता हुआ असार दुनय करनेवाला दुष्ट परोक्षमें क्या कहता है ? खोटे बोलनेवाले दुष्टको लो मैं मुक्त करता हूँ । यदि उसे दोष दिखाई देता है तो वह उसे ग्रहण करे ||९|| ११ १० जो मुनीश्वरोंके निवासस्थान कैलास पर्वत के शिखरपर निवास करता है, किन्नरियोंकी वेणु-वीणाओं की ध्वनियोंसे सन्तुष्ट होता है, जो श्यामवर्ण पुण्यात्मा प्रसन्न शुभ है, आदिदेव ऋषभका देवाधिभक्त और बुध है, ऐसा वह गोमुख यक्ष इस अप्रमेय कथाका चिन्तन करते हुए मेरे सम्मुख हो । जो विघ्नोंका नाश करनेवाली, शास्त्रोंके साररूपी जलोंकी कल्लोलमालाओंपर चलनेवाली, शत्रुओंका विदारण करनेवाली, जन्मान्तरमें हिंसा करनेवाली और स्तम्भन विद्यावाली ब्राह्मणी थी, जो साधुदानके कारण, सम्यक्दर्शन और ज्ञानसे युक्त, गुणोंकी अपेक्षा करनेवाली यक्षिणी हुई। जो गिरिनार पर्वतपर निवास करनेवाली सर्व भाषासमूहको प्रकाशित करनेवाली, ऊँचे वटवृक्षोंपर निवास करनेवाली हँसती हुई और प्रिय बोलनेवाली है । जो क्षुद्रवादियोंके विवेकका अपघात करनेवाली, वादिनी, अम्बिका, गौरी, गान्धारी, सिद्धायनी तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy