SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 552
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महापुराण [V. 18 18. अवहंस = अपभ्रंश । VI [एक दिन जब ऋषभनाथ राजसुखोंका भोग कर रहे थे तो इन्द्र उनके बचे हुए कार्यका चिन्तन करता है कि उन्हें इस धरतीको पूर्ण बनाना है, विश्वमें जिनधर्मका उपदेश करना है। पृष्ठ 429 उन्होंने नीलांजना अप्सरा नृत्य करनेके लिए भेजी। वह आयो, उसने नृत्य किया और वह मर गयी । उसे मृत देखकर जिनको संसारकी क्षणभंगुरताका बोध हुआ।] 2. पोर्टर और चपरासी राजभवनमें जीवन नियन्त्रित करते हैं। कवि उन बहुत-सी बातोंका उल्लेख करता है जो राजाके सामने नहीं की जानी चाहिए । 5. स्पष्ट है। पृष्ठ 430 स्पष्ट है। पृष्ठ 431 स्पष्ट है। पृष्ठ 432 VII [ नीलांजनाको मृत्युके कारण ऋषभका दृष्टिकोण बदल गया। उन्होंने सोचा कि संसारमें प्रत्येक वस्तु क्षणभंगुर है, असहाय और एकान्त है। आत्माको जन्म और मृत्युकी परम्परामें-से जाना पड़ता है। अनुभव दुःखमें गुजरना होता है । पुण्य-पाप करता है और संसारमें परिभ्रमण करता है। इसलिए यदि आत्मा अपना भला चाहता है, तो उसे सबसे पहले पाप-प्रवृत्तियाँ छोड़नी चाहिए। इससे उसकी पूर्व संचित परम्परा नहीं बढ़ेगी। उसे तप करना चाहिए जिससे उसके पहलेके कर्मको निर्जरा होगी। इस प्रकार विचार करते हुए उन्होंने तपका निश्चय कर लिया। इस अवसरपर देव आये और उन्होंने उत्साह बढ़ाया और संसारमें जैनधर्मके प्रसारकी प्रेरणा दी । ऋषभने भरतको अयोध्याकी गद्दीपर बैठाया, उन्होंने पोदनपुर बाहुबलिको दिया। वह पद्मासनमें स्थित हो गये और उन्होंने संसारसे सम्बन्ध तोड़ लिया। मातापिताने इसका अनुकरण किया । देवताओंने तपकल्याण मनाया। वह वनमें तप करने चले गये। पत्नी और पुत्रोंने भी उनका अनुकरण किया। उन्होंने केश लौंच किया। उसने हीरोंकी तश्तरीमें उन्हें रखा तथा उन्हें क्षीर समुद्र में विसर्जित किया। पांच महावत धारण करके वह दिगम्बर हो गये। ] 1. 11 जिस मनुष्यपर स्त्रियां नमक उतारती है अर्थात् वह मनुष्य, जिसे स्त्रियां इतना प्यार करती है। इसमें उस प्रथाका सन्दर्भ है जिसमें स्त्रियाँ मनुष्यको कितना प्यार करती हैं । यह इस प्रथाको भी सन्दर्भित करती है जिसमें मृत शरीरको नीचे उतारकर लकड़ियोंपर रख दिया जाता है। 2. पन्द्रह कर्मभूमियोंमें उत्पन्न । मनुष्य अपने कर्मके अनुसार, मृत्युके बाद कोई भी स्थिति प्राप्त कर सकता है। 7. ब्राह्मण यदि पशुओका मांस खाकर, शराब पीकर मोक्ष पा सकता है तो धर्मकी क्या आवश्यकता है। शिकारीकी प्रतीक्षा करो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy