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________________ ४६२ महापुराण 1. 66 एक स्त्री, जिसने कुवलय अपने हाथमें ले लिया, यह कुवलय ( नीलकमल ) की तुलना राजवृत्तिसे की गयी है; राजवृत्ति भी कुवलय ( पृथ्वीमण्डल ) धारण करती है, तथा शत्रुओंका नाश करती है । 2. 13 जो दूसरोंकी पीड़ा दूर करती है । भुवनरूपी कमलके विकासके लिए सूर्यके समान । जिनवर विश्वको उसी प्रकार प्रसन्न रखते हैं जिस प्रकार सूर्य कमलको रखता है । 3. 5 - 11 इन पंक्तियोंमें जिनकी लम्बी उपमा है, कि जिनके कमलके समान चरण, कुबेर और दूसरे देवोंके मुकुटमणियोंकी कान्तिके जलसे धोये जाते हैं कि जब वे जिनवरके चरणोंमें अपना सिर झुकाते हैं । 35 आप कृपा कर मुझे पाँचवीं गति ( मोक्ष ) में ले जाइए । सिद्धावस्था = संसारसे मुक्ति । पहली चार गतियाँ हैं देव, नरक, तिर्यक् और स्वर्ग । 4. 74 जिनका आदि और अन्त नहीं है । कहने का तात्पर्य है—भावी तीर्थंकरोंकी संख्या अनिश्चित है । 8-9 समयका न आदि है और न अन्त । वह अनिश्चित है । समय, विश्व में परिवर्तनका सहायक कारण है; इसमें रूप, गन्ध, रंग और सार नहीं है । समय अपने निश्चयकालमें परिवर्तन द्वारा प्रवर्तन करता है, व्यवहारकाल हमारे दैनिक व्यवहारसे पहचाना जाता है । 5. 36 प्रिंयकारिणीके पुत्र महावीर; जो त्रिशला के नामसे प्रसिद्ध हैं । कल्पसूत्र 109 से तुलना कीजिए कि जिसमें प्रीतिकारिणी नाम दिया गया है । 100 गुणा किया जाता है । 6. 100 विभाजन करने योग्य । 8. उत्सर्पिणी काल, जिसमें शक्ति बढ़ती है, शरीरकी ऊंचाई, क्षमता, ज्ञान, पवित्रता, गम्भीरता और साहस | अवसर्पिणी- इसमें योग्यताएँ क्षीण होती हैं। 76 दश कल्पवृक्ष | 8 422 9. 30 प्रतिश्रुति प्रथम कुलकर, जैन पौराणिक कथाके अनुसार । अममके बराबर लम्बाईकी आयु रखनेवाले । अमम ( बड़ी संख्या ) । दूसरे कुलकर या मनु हैं जो नौ-दसमें वर्णित हैं — सम्मति, क्षेमंकर, क्षेमन्धर, सीमंकर, सीमन्धर, विमलबाहु, चक्षुष्मान्, यशस्वी, अभिचन्द, चन्द्राभ, मरुदेव, प्रसेनजित् और नाभि । 11. 1 प्रथम कुलकरने विश्वकी व्याख्या की, तथा पहली बार उन्होंने सूर्य और चन्द्रमाके कार्योंकी खोज की, जो कि इस समय के पूर्व दूसरे मनुष्योंके द्वारा देखे नहीं गये थे क्योंकि संसार कल्पवृक्षों द्वारा वितरित प्रकाशसे भरपूर था । दूसरेने नक्षत्रों और ग्रहोंकी खोज की । इसी प्रकार प्रत्येक कुलकरने विश्वमानव सभ्यतामें कुछ न कुछ योगदान दिया । अन्तिम कुलकर नाभिराज थे । उन्होंने बच्चोंके नाल काटने की प्रथाकी खोज की। और बादलोंका पता लगाया । घरतीको विभिन्न खाद्यान्नोंसे भर दिया। लोगों को बुनने और भोजन बनानेकी कला सिखायी । मानव सभ्यताकी भलाई के लिए । 17. 56 यह जानकर कि तीर्थंकरका जन्म किसी स्थान विशेषपर होता है, इन्द्र कुबेरको आदेश देता है कि वह सम्पन्न सुन्दर अयोध्या नगरी बनाये जिससे जिनवर जन्म ले सकें । 19. 1“ हेमचन्द्रने अपने व्याकरणमें IV पृष्ठ 422, छुडुको यदिका पर्यायवाची बताया है । परन्तु मैं नहीं समझता कि छुडु सदैव यदिके अर्थ में प्रयुक्त हो । मेरे विचार में छुडुका अर्थ 'क्षिप्र' है, जो यहाँ उपयुक्त है । और दूसरे जगह भी । नोचे टिप्पणी में इसका अर्थ 'यदा' किया गया है, परन्तु मेरे विचार में यह शुद्ध नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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