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________________ ४६० महापुराण मुक्ति या सिद्धि कहते हैं। 5a-जो शुभ शील और गुण समूहके निवास गह है। 10a-जिन्होंने आकाशको रंग-बिरंगा कर दिया है। इन्द्रने स्वर्गसे जो पुष्प बरसाये उनसे आकाश रंग-बिरंगा हो गया । 15b- यहाँ कवि प्रसंगवश छन्दका नाम बताता है, जो है मात्रासम । 17 जिसके तीर्थ में 2. कवि पांच परमेष्ठियोंकी वन्दना करता है-तीर्थ, सिद्ध, आचार्य, आध्याय और साधु, और विद्याकी देवी सरस्वतीसे सहायताकी याचना करता है। 2. 36 कोमल पद ( पद = चरण और पैर), कवि विद्याकी देवीका वर्णन करता है; वह एक सुन्दर नारीके प्रतीकके रूपमें। इसीलिए, जो उपमाएं प्रयुक्त की गयी है वे सरस्वती और स्त्रीपर लागू होती हैं । 5a अपनी इच्छासे चलती है (स्त्री) सरस्वती भी छन्दसे चलती है। 6a चौदह पूर्वोसे युक्त । T सरस्वती चौदह पूर्व ग्रन्थ रखती है, जो जैन वाङ्गमयके प्राचीन ग्रन्थ हैं; जो अब अप्राप्य हैं। सरस्वती द्वादश अंगोंसे युक्त है। द्वादश अंग जैनों के प्राचीन आकर ग्रन्थ है, जैसे आचारांग इत्यादि । सरस्वती सप्तभंगीसे उपयुक्त है। __3. 3 a-6 हम जानते हैं कि राष्ट्रकूट-राजाके कई विरुद थे। पुष्पदन्तकी रचनाओंमें इसी प्रकारके कुछ और नाम है । जैसे शुभतुंग, वल्लभदेव । पृष्ठ 419 तुडिगु= कन्नडमूलक शब्द प्रतीत होता है। 7b = जहाँ आम वृक्षोंके ऊपर तोते इकट्ठे हो रहे हैं ? खण्ड -पुष्पदन्त । अहिमाणमेरु = अभिमानमेरु-कविका उपनाम । 14 = वरि, वर= यह अच्छा है। 15 - सूर्योदय न देखें ? 4. राज्यको बुराइयोंकी निन्दा । 4. 3 a सप्तांगराज्य-स्वामी, अमात्य सुहृत, कोश, राष्ट्र, दुर्ग और बल । 4विषके साथ, जिसका जन्म हुआ। 5. भरत ( मन्त्री ) की प्रशंसा । 5.30 प्राकृति कवियोंके काव्यरसका आस्वादन करनेवाला । इस उपमाका विशेष महत्त्व है। सम्भवतः इसलिए कि उस समय प्राकृत-काव्यकी विशेष प्रशंसा नहीं की जाती थी या वह समझा नहीं जाता था, और सम्भवतः उसकी उपेक्षा की जाती थी। 6. भरतके भवनमें कविका स्वागत । और भरतका कविसे महापुराणको रचनाका प्रस्ताव । 6.9a देवीसुत - भरत । 7. कवि महापुराण लिखनेकी अपनी असमर्थता व्यक्त करता है क्योंकि दुर्जन अच्छी रचनाओंकी भी आलोचना करते हैं जैसे प्रवरसेनके सेतुबन्धकी। ____7. 3 a उपमाओंकी यह शृंखला दोहरे अर्थ रखती है, जो घनदिन और दुर्जनपर एक साथ घटित होते है। ... 8. भरत पुष्पदन्तको विश्वास दिलाता है कि दुर्जन मनुष्य हमेशा वैसे होते हैं, परन्तु बुद्धिमान व्यक्तिको उसपर ध्यान नहीं देना चाहिए। .. 8.7bकुत्तेको पूर्णचन्द्रपर भौंकने दो, काव्यपिशल्ल-पुष्पदन्तका दूसरा उपनाम । काव्य पिशाच काव्य राक्षस। . ... 9. आत्मविनयके व्यानसे कवि बताता है कि महापुराणके रचनेकी प्रतिभा उसमें नहीं है, फिर भी आदरणीय व्यक्तियोंके बहाने वह इस काममें प्रवृत्त हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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