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________________ महापुराण महापुराण क्या है ? दिगम्बर जैनोंका कहना है कि उनका पवित्र साहित्य ( पूर्व और अंग ) खो गया है। इसलिए वे श्वेताम्बरोंके शास्त्रोंके प्राधिकार ( अथोरिटी) को नहीं मानते । दिगम्बरोंके अनुसार शास्त्र के चार भाग हैं। (१) प्रथमानुयोग, जिसमें तीर्थंकरों और अन्य जैन महापुरुषोंकी जीवनियाँ होती हैं, तथा कथा साहित्य होता है । (२) करणानुयोग, इसमें विश्वका भूगोल होता है । (३) चरणानुयोग-इसमें मुनियों और गृहस्थोंके आचरणके नियम रहते हैं। (४) द्रव्यानुयोग-जो दार्शनिक श्रेणीका होता है। इस विभाजनके अनुसार यह कृति प्रथमानुयोगमें आती है। महापुराण, जैन साहित्यमें एक विशेष शब्द है जिसका अर्थ है प्राचीन समयका महान् वर्णन । परन्तु वह एक व्यक्तिगत या पवित्र जीवन का वर्णन करते हैं। जब कि महापुराण त्रेसठ प्रमुख जैन व्यक्तियों के जीवनका वर्णन करता है। इसका दूसरा नाम त्रिषष्टिशलाकापुरुष है जब कि हेमचन्द्र इसे त्रिषष्टिशलाका चरित कहते हैं । पुष्पदन्त त्रिषष्टी पुरुष गुणालंकारके विकल्पमें 'महापुराण' नाम रखते हैं । यानी गुणोंका अलंकरण या त्रेसठ महापुरुषोंके गुण । पुराण शब्दकी हिन्दू साहित्यमें यह परिभाषा है। सर्गश्च प्रतिसर्गश्च बंशो मन्वन्तराणि च वंशानुचरितं चैव पुराणं पञ्चलक्षणम् ॥ पुराण पांच प्रकरणोंका विचार करते हैं: उत्पत्ति, प्रलय, वंश और मन्वतर मनु और वंशोंका इतिहास । यह परिभाषा हमारे महापराणपर भी लाग होती है। क्योंकि इन पाँच प्रकरणोंको हम इसमें पाते हैं। फिर यह देखना दिलचस्प होगा कि जैन इस शब्दकी किस प्रकार व्याख्या करते हैं । जिनसेन, जो पुष्पदन्तके पूर्ववर्ती है, अपने पुराण में लिखते हैं मैं वेसठ प्राचीन महापुरुषों के पुराणको कहूँगा। इसमें तीर्थंकरों, चक्रवतियों, वासुदेवों, बलभद्रों तथा प्रतिवासुदेवोंका वर्णन है। यह रचना पुराण इसलिए है क्योंकि इसमें प्राचीनोंका इतिवृत्त है। यह महान् इसलिए है क्योंकि इसमें महापुरुषोंका वर्णन है। अथवा इसका वर्णन ग्रेट ( महान् ) मुनियोंके द्वारा किया गया है । अथवा यह इसलिए महान् है क्योंकि यह महान् शिक्षा देता है । दूसरे लेखक कहते हैं चूंकि इसका प्रारम्भ पुराने कवियोंसे हुआ है, इसलिए यह पुराण है, और यह 'महान्' इसलिए कहलाता है, क्योंकि इसमें आन्तरिक महानता है। महान् मुनियोंने इसे महापुराण इसलिए कहा है क्योंकि इसका सम्बन्ध महापुरुषोंसे है, और यह महान शिक्षा देते हैं। हमारे टेक्स्टके छन्द 1,9.3 के टिप्पण में इतिहास और पुराण का अर्थ स्पष्ट किया गया है। उसके अनुसार, इतिहास एक व्यक्तिके वर्णनको कहते हैं जब कि महापुराणमें त्रेसठ शलाका पुरुषोंका वर्णन होता है। (अइहास एकपुरुषाश्रया कथा, पुराण = त्रिषष्टिपुरुणाश्रिता कथा पुराणानि )। इसलिए, जैनधर्मके त्रेसठ महापुरुषों के जीवनोंका वर्णन करनेवाला काव्य महापुराण है, और इसलिए जैनोंमें महापुराण महत्त्वका वही स्थान रखता है, जो महाभारत या रामायण हिन्दुओंमें । फिर भी इसे एपिक काव्य नहीं कहा जा सकता, इस शब्दके सही अर्थ में, क्योंकि इसमें रामायण या महाभारतकी तरह एकता ( unitiy ) की कमी है। जिन त्रेसठ महापुरुषोंका वर्णन महापुराणमें है, वे पांच वर्गोमें विभक्त हैं । तात्कालिक सन्दर्भके लिए मैं उनके नाम नीचे दे रहा हूँ। नाम देवनागरी लिपिमें हैं। 24 तीर्थकर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव, 9 प्रतिवासुदेव, 9 बलदेव (बलराम) इनमें शान्ति, कुन्थु और अहं तीर्थंकर और चक्रवर्ती दोनों थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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