SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 493
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८. ११.३] हिन्दी अनुवाद ४०७ स्नेह किया है, बालक होते हुए भी आपने पण्डितोंकी गतिको देख लिया है। अपर (जो पर न हो) होते हुए भी आपने पर (अरहन्त ) में अपनी मति लगायी है। तुमने अपने बाहबलसे मुझे माप लिया है। और तुम्होंने फिर करुणाभावसे मेरी रक्षा की है। तुमने अपने हाथसे मुझे धरती दी है, वास्तवमें तुम्ही जगमें परमेश्वर हो। दूसरोंका उपकार करनेमें धीर और शान्त । जो धरतीका परित्याग कर अपने नियममें स्थित हो गये। तुम्हारे-जैसे और विश्वगुरु ऋषभनाथजैसे मनुष्य इस दुनियामें एक या दो होते हैं। लेकिन हम-जैसे. रसना और स्पर्शकी लालसा रखनेवाले खोटे मानुष घर-घरमें हैं। क्रोधी, दूसरोंका हरण करनेवाले, विषसे भरे पापबहुल, पराधीन और अपनेको भरनेवाले। घत्ता-हा ! मैंने बहुकर्मोके परवश होकर विषयबलोंको नष्ट नहीं किया और एक अपने जीवके लिए सैकड़ों जीवोंका बध किया ॥९॥ उस समय इन्द्र, चन्द्र और देवोंके द्वारा वन्दनीय बाहुबलि मुनीन्द्रने एक जीवके ही गुणका चिन्तन अपने मनमें किया। राग ओर द्वेष दोनोंको उड़ा दिया। हृदयसे तीनों शल्योंको । दिया। और तीन रत्नों ( सम्यक्दर्शन, ज्ञान और चारित्र्य ) को अपने मनमें उत्पन्न किया। संक्षेपमें उन्होंने तीनों प्रकारके दम्भ छोड़ दिये। देवने तीन गौरव छोड़ दिये। चार गतियों और कर्मोंके निबन्धनमें रमनेवाली चारों संज्ञाओंको शान्त कर दिया। उनके पांच महाव्रत अखण्डित थे और पांच आस्रव-द्वार नष्ट हो चुके थे। उन्होंने पांचों इन्द्रियोंको व्यर्थ कर दिया था और पांच ज्ञानावरणकी ग्रन्थियोंको भी। विशेष रूपसे छह आवश्यकोंमें उद्यम किया था। छह प्रकारके जीवोंमें दयाभाव प्रकाशित किया था। छहों लेश्याओके परिणाम शान्त हो गये, छहां द्रव्य प्रत्यक्ष दिखाई देने लगे। गम्भीर उन्होंने सातों भयोंको समाप्त कर दिया, उस धीरने सातों तत्त्वोंका ज्ञान प्राप्त कर लिया। सदय उसने आठों मदोंका नाश कर दिया, उस वरिष्ठने आठों सिद्ध गुणोंका स्मरण कर लिया। उसने नौ प्रकारके ब्रह्मचर्यका परिपालन किया, नवपदार्थपरिमाणको देख लिया। पत्ता-दस प्रकारके जिनधर्मको और अविकारी धीर श्रावकोंकी जड़मतिको नष्ट करनेवाली ग्यारह प्रतिमाओं तथा मुनियोंकी बारह प्रतिमाओंको जान लिया ॥१०॥ उन्होंने तेरह प्रकारके क्रिया स्थानोंको समझ लिया और तेरह प्रकारके चारित्रोंको गिन लिया, चौदह परिग्रह मलोंको छोड़ दिया, प्राणियोंके चौदह भेदोंको जान लिया है। पन्द्रह प्रमादोंको छोड़ते हुए पुण्य-पापको भूमिको जानते हुए सोलह प्रकारको कषायोंको शान्त करते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy