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महापुराण
भरत, पुष्पदन्तका आश्रयदाता
इस प्रकार पुष्पदन्तके महापुराणमें कुल 48 प्रशस्तियाँ हैं इनमें 6 क्रमांक 5, 6, 16, 30, 35 और 48 प्राकृतमें हैं और शेष संस्कृतमें है। उक्त छन्दोंकी प्राकृत शुद्ध और शालीन है। परन्तु यही बात संस्कृतके विषयमें नहीं कही जा सकती। कभी-कभी उसमें बीच में प्राकृत आ जाती है (जैसे चोज्जें, 29वां छन्द) इन छन्दोंमें सरस्वतीकी वन्दना (22), अम्बिका ( 23 ) आदिका वर्णन है। कवि स्वयं अपने (1,4, 14, 26, 27, 35, 38, 42, 43, 44 ) और अपने आश्रयदाता भरतके गौरवके विषयमें कहता है । इसके अतिरिक्त (3-8 XXXVII, 3-5,13) और घत्ता पंकियों और पुष्पिकाओंमें भरतका उल्लेख है । जैसे ( महाभव्य भरत द्वारा अनुमत इस काव्य में )।
जसहरचरिउकी कुछ पाण्डुलिपियोंमें भी संस्कृतमें तीन छन्द है जिनमें भरतके पुत्र नन्न और उत्तराधिकारीका वर्णन है । णायकुमारचरिउके अन्तमें एक लम्बी प्रशस्ति है जिसमें ननके बारे में विशेष जानकारी है। इन सूचनाओंके आधारपर भरतकी जीवन रेखा प्रस्तुत की जा सकती है कि जिसकी उदारताके कारण विश्वको अपभ्रंश महाकाव्य मिल सका।
अब हमारे पास राष्ट्रकूटों और उनके समयका शानदार लेखा हैं (डॉ. ए. एस. आल्टेकर द्वारा लिखित ) जिसमें कुछ पृष्ठों ( 115-123 ) में कृष्ण तृतीय ( 939-964 A. D.) के समयकी राजनीतिक घटनाओंका उल्लेख है। उसके एक अध्याय (XIV) में राष्ट्रकूटोंकी शिक्षा और साहित्यके बारेमें वर्णन है। फिर भी उसमें भरतका सन्दर्भ नहीं है, जो कृष्ण III का मन्त्री था। इसके विपरीत प. 412 में यहाँ तक उल्लेख है कि आलोच्यकालमें शायद ही किसी प्राकृत साहित्यकी र वना हुई हो, जबकि पुष्पदन्तने मन्त्री भरत और उसके पुत्र नन्नके आश्रयमें तीन अपभ्रंश काव्योंकी रचना की जो दो हजार पृष्ठोंके बराबर है । कवि और उसके आश्रयदाताओंको न तो भुलाया जा सकता है और न उपेक्षा की जा सकती है। इसलिए यहाँपर प्राकृत साहित्यके विस्मत आश्रयदाताके जीवनकी संक्षिप्त रूपरेखा देना अप्रासंगिक न होगा, उस सामग्रीके आधारपर जो प्रशस्तियोंके रूपमें उपलब्ध है।
पुष्पदन्तके साहित्य में कृष्ण III के तीन नाम है तुडिग, सुह तुंगराय ( शुभ तुंगराज) कृष्णराज और वल्लभनप । वह 939 A. D. में गद्दीपर बैठा. और 968 A. D. तक उसने शासन किया। इसके बाद उसका छोटा भाई खुटिग देव गद्दीपर बैठा, जिसके शासनकालमें 972 में राष्ट्रकूटोंकी राजधानी मान्यखेट धारा नरेशके द्वारा लूटी गयी। भरत कृष्ण III के मन्त्री थे । भरतके पुत्र नन्नको भी शुभतुंगरायका मन्त्री बताया गया है। जब पुष्पदन्तने अपना महापुराण पूरा किया, उस समय भरत जीवित थे, यानी 965 A.D. तक और चूंकि कृष्ण III की मृत्यु 968 में हुई, इससे यह अनुमान करना पड़ता है कि भरतका निधन 965 से 968 के बीच हुआ, इसीलिए उसका पुत्र नन्न उत्तराधिकारी बना 968 में । नन्नने पुष्पदन्तको अपना संरक्षण दिया और जसहरचरिउ तथा णायकुमारचरिउ लिखनेकी प्रेरणा दी।
भरत कोंडिल्ल गोत्रके मालूम होते हैं। यह एक सम्पन्न परिवार था जिसके सदस्य मन्त्री बनते थे ( महामंत्राह्वयः); परन्तु वह दरिद्र हो गया था। इस बातके संकेत और प्रमाण हैं कि भरतने अपने वंशके गौरव और समृद्धिको फिरसे स्थापित किया, अपने स्वामीकी एकनिष्ठ सेवा कर । ( संतानक्रमतो गतापि हि रमा कृष्टा प्रभोः सेनया) उनके पितामह का नाम अन्नय्या था और उनकी माँका नाम देवी था । भरतका कोई भाई या सगा-सम्बन्धी नहीं था। (बंधुरहितेन ), उसका विवाह कुन्दव्वासे हुआ था, और उसके सात पुत्र थे। देविल्ल, भौगिल्ल, नन्न, सोहन, गुणवम्मा ( वर्मा ), दंगइया और संतइय्या । नन्नको कुन्दम्बाका पुत्र · बताया गया है और यह असामान्य नहीं है कि भरतकी और पत्तियां रही हों। भरतके सातों पुत्र इस समय तक (965 ) जीवित थे। लेकिन जब 968 में नन्न भरतका उत्तराधिकारी बना,
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