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१७. १३.१२]
हिन्दी अनुवाद
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धत्ता - प्रतिभटकी दृष्टिके प्रभावोंसे पराजित चक्रवर्ती नीचा मुख करके रह गया, नवकुसुमांजलियाँ डालते हुए देवोंने सुनन्दाके पुत्र बाहुबलिको संस्तुति की ॥११॥
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मतवाले गजोंकी लीलाका अपहरण करनेवाले तथा लक्ष्मीके निवासघरस्वरूप जिनके वक्षपर हार आन्दोलित हैं ऐसे वे दोनों राजा फिर सरोवर के भीतर प्रविष्ट हुए और उन्हें नागेन्द्रों, चन्द्र और इन्द्रने देखा । प्रवेश करते हुए स्वच्छ नीर देखा, जो विशाल गम्भीर और हिमकणोंके समूहकी तरह निर्मल था । हवासे उड़ती हुई पराग धूलिसे लिप्त था, जिसकी तरंगमाला भूमिरूपी रंगमंचपर क्रीड़ा कर रही थी, जहां लीला में हंस हंसनियोंके पथमें लगे हुए थे, लक्ष्मीके नूपुरोंके अलापपर मयूर नृत्य कर रहे थे, जहाँ मृणालके आहारसे चकोरकी चोंच भरी हुई थी, अमर तैर रहे थे, जिसमें सुन्दर क्रीड़ा प्रारम्भ की गयी थी, जलसे मछलियाँ निकल रही थीं, जो लतापत्रोंसे नीला था, जिसमें चन्द्रमाके प्रतिबिम्बके हरिणपर सिंह झपट रहा था । उठती हुई फेनावलीसे तट ढके हुए थे, गूँजते हुए भ्रमरोंका कोलाहल हो रहा था, जो सारसोंसे भरा हुआ था, सूयंसे मुक्त किरणावली से फूल खिले हुए थे, जिसमें अनेक पक्षीन्द्रों और यक्षेन्द्रोंको शब्द सुनाई दे रहा था और जो डूबते हुए गजों की सूँड़ोंसे मर्दित था ।
घत्ता - ऐसे उस सरोवरमें वे दोनों उतरे। स्वामीने अपने भाईके ऊपर जलकी धारा छोड़ी मानो हिमालयसे गंगानदी धरतीके ऊपर आ रही हो ||१२||
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वक्षस्थल पाकर वह फिर मुड़ी और दुष्टकी मित्रताकी तरह नीचा मुख कर गिर पड़ी । उस सुन्दरके कटितटपर दौड़ती हुई ऐसी मालूम हो रही थी, जैसे मन्दराचलपर तारावली हो । मानो मरकत महीधरपर चन्द्रमाकी कान्ति हो, मानो नील वृक्षपर हंसपंक्ति हो, हिलती हुई धारा ऐसी मालूम होती थी, मानो कण्ठसे भ्रष्ट स्वच्छ हार हो, मानो चंचल लहरोंसे विस्फारित गंगानदी हो, कि जिसमें आकाश तक मत्स्य और शिशुमार उछल रहे थे। तब क्रुद्ध होकर सुनन्दा के पुत्र बाहुबलिने भरतके ऊपर भारी जलधारा छोड़ी। उसने राजाको चारों ओरसे आच्छादित कर लिया, मानो जिनेन्द्र भगवान्की कीर्तिने तीनों लोकोंको ढक लिया हो, मानो शरद्की मेघावलीने स्वर्णगिरिको मानो चन्द्रमाको किरणमालाने उदयाचलको ढक लिया हो। जलसे नवस्रोत पूरे हो गये, बहु परिजन और स्वजन पीड़ित हो उठे । तब बाहुबलि राजाके अनुचरोंने महास्वरोंमें विजय की घोषणा कर दी ।
घत्ता - अपना सिर पीटता और छल छोड़ता हुआ तथा सरोवरके जलप्रवाहसे अभिसिंचित पृथ्वीपति भरत हटाया गया। पृथ्वीपति भरत उसी प्रकार जीत लिया गया, जिस प्रकार हाथीसे हाथी जीत लिया जाता है ||१३||
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