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________________ १६. १३.११] हिन्दी अनुवाद ३६५ १२ जबतक महायुद्ध में समर्थ शत्रु तुम्हें युद्ध में नहीं मारता और जबतक तीखी तलवार हाथमें लिये हुए वह तुम्हारी निराकुल धरतीका अपहरण नहीं करता, तबतक आप उसके पास दूत भेजें । यदि वह प्रणाम करता है तो उसका पालन किया जाये, नहीं तो फिर बाहुबलिको पकड़ लिया जाये और बांधकर कारागारमें डाल दिया जाये।" जब उसने (पुरोहितने ) यह मन्त्रणा दी तो राजाने उसके पास दूत भेजा। वह दूत अपने स्वामीमें अनुरक्त शत्रुका विध्वंस करनेवाला सुभट, सुलक्षण, सौम्य, सुदर्शन, देश-जाति और कुलसे सिद्ध-प्रसिद्ध, पण्डित, चतुर, प्रभुको लक्ष्मीसे समृद्ध, विविध विषय और भाषाओंका बोलनेवाला, उत्तरको देख लेनेवाला और महिमासे महान्, तेजस्वी, प्रभुका तेज रखनेवाला, मधुरभाषी, आदरयुक्त और अजेय था। अपने वाहनको प्रेरित कर दूत चल दिया और कई दिनोंमें पोदनपुर नगर पहुंचा। जहाँ वनतरुओंकी शाखाओंसे मधु निकल रहा था, चंचल अशोक वृक्षोंके पत्ते हिल रहे थे। अत्यन्त लम्बे प्रवासके श्रमसे सब ओरसे प्रवेश करते हए पथिकोंके द्वारा रस विशेषकी धारासे महकते हए जहां सुरभित फल खाये जाते हैं। पुष्पोंके द्वारा मालाएँ गूंथो जाती हैं और भ्रमणशील मधुकर चारों दिशाओंमें गुनगुना रहे हैं। घत्ता-जहाँ शब्द करके और चोंचरूपी करसे खींचकर रसीले लाल-लाल वनश्रीके अधरके समान कुंदरु फलको शुकने काट खाया ॥१२।। १३ धान्यके श्रेष्ठ खेतोंके मार्गमें काले और सफेद बालवाले रीछ झनझनाते हुए घन कणोंवाले धान्यको प्रतिदिन चुगते हैं। जहां निर्धनता (स्निग्धत्व ) चन्द्रमाके द्वारा दिखायी जाती है मनुष्यमें निर्धनता दिखाई नहीं देती। जहां विहार शब्द प्रासादोंमें प्रियकारक होता है, प्रेम उत्पन्न करनेवाला नारीजनके कण्ठ विहार (हार रहित) नहीं है। जहाँ चटकके द्वारा (गौरैया ) उपवास ( गृहोंके भीतर वास ) किया जाता है, वहाँके लोग रोग और दुष्कालके कारण उपवास नहीं करते। जहाँ किसीके द्वारा सुरागम नहीं किया जाता ( मदिरापान ), गुणियोंके गुणोंसे सुरागम ( देवागम ) होता है। जहाँ मुनि दीक्षामें ही शिखाउच्छेद होता है माणिक्योंकी किरण परीक्षामें शिखाच्छेद नहीं होता है। जहां लेपकर्ममें असिलाभवरूप ( अमूर्तसे उत्पन्न रूप ) होता है, विशिष्ट मारण संकल्पमें नहीं। जहां वन और यौवन सदैव नवत्व धारण करते हैं, निरुपद्रव रूपसे रहता जन नवत्व धारण नहीं करते ( पुरानी व्यवस्थाका त्याग नहीं करते ) । जहाँ अनासंग ( संसारसे विरक्त ) मुनियोंके लिए कुसादूषणु ( पृथ्वी और लक्ष्मी दूषण है ) अश्वारोही और राज्यपदको प्राप्त व्यक्तिके लिए पृथ्वी और लक्ष्मी दूषण नहीं है। जहां स्तनोंमें सघनता और पतन है, वहां लोगोंमें सघनता और पतन नहीं है। जहां अधरोंमें धरण ( पकड़ा जाना) और निष्पीड़न है, वहाँके जनोंमें ये बातें नहीं हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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