SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५. १२. १४] हिन्दी अनुवाद ३४१ ११ सैन्यको आनन्द देनेवाला कड़ा हाथमें, और हाथ जोड़कर सिरपर मुकुट रख दिया। नोहारके समान सुन्दर हार और माणिक्योंका ब्रह्मसूत्र हिमवन्त पर्वतकी शिखरेश्वरी देवी गंगा नदीने दिया। जिस प्रकार ब्रह्मसूत्र ब्रह्मपुत्रको शोभा देता है, आचारसे च्युत दूसरे आदमीको शोभित नहीं होता। दी गयी क्षुद्रघण्टिकाओंसे गूंजती हुई करधनी, भ्रमरमालासे निनादित सुमनमाला, चारों समुद्रपतियोंका अतिक्रमण करनेवाले राजाको शोभा देती है। देवरत्नोंकी मालाएँ दी गयीं। देवजनोंके हृदय प्रसन्न हो गये । कमल ही उस लक्ष्मीलता गंगाके छत्र, वेष और वस्त्र थे। घत्ता--इस प्रकार उन्हें ग्रहण कर राजाने सुन्दर हंसके समान चालवाली गंगानदीकी पूजा कर उसे भेज दिया, वह अपने घर चली गयी ॥११॥ १२ विजयरूपी लक्ष्मीसे आलिंगित उस स्वामीका दर्शन बताओ किस-किसने नहीं मांगा। गंगानदीको प्रसन्न कर दरिद्रोंसे प्रेम करनेवाला और दान देनेवाला सैन्य वहांसे कूच करता है। हरिणसमूह वहां क्या चर सकता है, कि जहाँ वृक्ष और पेड़ धूल हो जाते हैं, उछलती हुई धूलसे सूर्य ढक गया है। उगे हुए कमलोंसे नदी शोभा पाती है और सेना रंग-बिरंगे सैकड़ों छत्रोंसे । नदी, हंसों और जलचरोंसे शोभा पाती है, और सेना धवल चमरोंसे। नदी शोभित है, तैरती हुई मछलियोंसे, और सेना शोभित है तलवारों तथा झस अस्त्रोंसे । नदी शोभित है संगत जलावर्तोंसे, सेना शोभित है रथचक्रों और गजोंसे । नदी शोभित है स्वरों और तरंगोंके भारसे, सेना शोभित है श्रेष्ठ जल तुरंगोंसे । नदी शोभित है क्रीड़ा करते हुए जलगजोंसे, सेना शोभित है चलते हुए मैगल गजोंसे । नदी शोभित है बहु जलमानुसोंसे, सेना शोभित है किनर मानुसोंसे। नदी अपने तटोंसे शोभित है, सेना शोभित है चलाये हुए शकटोंसे। __ घत्ता-जिस प्रकार जलवाहिनी ( नदी ) शोभित है, उसी प्रकार महीपतिवाहिनी ( राजाकी सेना) शोभित है। महीधरों (पर्वतों) का भेदन करनेवाली इन दोनोंसे कहाँ कौन नहीं डरता ? ॥१२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy