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________________ १४. १२.९] हिन्दी अनुवाद ३२९ ११ मत्स्योंके द्वारा मान्य पानीमें वह शिविर बारह योजन तक, विस्तृत विशाल छत्र और चमं निर्मित सम्पुटमें वर्षाकालके समय स्थित हो गया। गिरते हुए प्रचुर पानीके दबावसे आकाशतल, धरणीतल और गिरिशिखर जलमय हो गये। लेकिन चर्मरत्न और आतपत्रोंके सम्पुटमें राजाके लोग इस प्रकार रह रहे थे, मानो स्वर्गमें स्थित हों। मेघ बरसते हैं, वे यह नहीं जानते। वे इष्ट और मीठे सुखोंको मानते हैं। रत्नोंके भीतर सेना चलती है और जो कमलोंके गर्भमें भ्रमरकुलकी तरह रति करती है । वह शत्रुकी शक्तिके हरणका उपाय अपने मनमें सोचता है और कागणीके द्वारा निर्मित सूर्य और चन्द्रकी किरणोंका प्रयोग करता है। सात दिन-रात बीत जानेपर चूड़ामणि धारण करनेवाले मारने के लिए विरुद्ध, कोयला हरि नील कालिन्दी और कालके समान काले, मुंहरूपी कुहरसे विषाग्नि ज्वालाओंको ऊंचे भ्रूभंगोंसे भंगुरित ( टेढ़े ) भालवाले शिशु चन्द्रमाके आकारकी दाढ़ोंसे विकराल, दूसरोंके दण्डको नष्ट करनेवाले यमदण्डके समान दीर्घ, आरक्त चंचल लपलपाती दो जीभोंवाले, भारी अभिमानवाले, म्लेच्छोंका परिग्रहण ( आश्रय ) लेनेवाले, कलहके इच्छुक दुर्दर्शनीय और क्रोधसे आरक्त नेत्रोंवाले, निश्वासोंके विषकणोंके भालसे चन्द्रमाको आलिप्त करनेवाले, मारो-मारो कहते हुए सांपोंके द्वारा, अश्वगजों, महायोद्धाओं और सामन्तों के प्रभारवाले स्कन्धावार दुहरा-तिहरा घेर लिया गया। तब रमणियोंके लिए सुन्दर संग्राममें चतुर-देवाधिदेवके पुत्र भरतने क्रुद्ध होकर पत्ता-शत्रुपुरुषके लिए अजेय जयका वीरपट्ट ( राजाने ) स्वयं बोध लिया, मानो विषधरवरों और नवजलधरोंपर युगका क्षय करनेवाला कृतान्त ही क्रुद्ध हो उठा हो ॥११॥ १२ तब सोलह हजार यक्षामरोंके द्वारा विरचित पवनोंके द्वारा मेघ उसी प्रकार नष्ट हो गये, जिस प्रकार चंचल हरिणोंके स्वामी ( सिंह ) से गज नष्ट हो जाते हैं। चक्रसे शत्रु महायोद्धा इस प्रकार छिन्न हो गये, मानो देवने दिशावलि छिटकी हो । यह देखकर नाग डरकर भाग गये। नवघन चले गये और वह बिजली चली गयी। तब म्लेच्छ राजाओंने करुणापूर्वक रोना शुरू कर दिया कि द्विजिहोंने यह क्या किया? जो विषसे भरे होते हैं उनमें क्या सज्जनता हो सकती है ? जो टेढ़ी गतिवाले हैं उनका क्या गुणकीर्तन ? छिद्रोंका अन्वेषण करनेवालोंसे कौन प्रसन्न हो सकता है ? जो हवाका पान करते हैं, उनसे दूसरोंका क्या पोषण होगा? चरण ( चारित्र पैर ) से रहित कोन यश पा सकता है ? नित्य भुजंगों ( गुण्डों और सांपों) को नीचता ही आ सकती है। युद्धके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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