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________________ ३१७ १४. ५.६] हिन्दी अनुवाद छह माह रहा। लताओंसे शोभित उस वनका उसने आनन्द लिया। जिसकी अग्निज्वाला शान्त हो चुकी है, धूममाला मन्द पड़ चुकी है, जो दीर्घ सांसे छोड़ रहा है मानो पर्वतका मुख हो, जो अन्धकारको दिखा रहा है, ऐसे उस गुहाद्वारका तापवेग समाप्त हो गया, उसमें मार्गका भेद बन गया, हवा ठण्डी लगने लगी और वह शीतल हो गया। पत्ता-तब चन्दनसे चर्चित, फूलोंसे अंचित सो आराओंसे चमकता हुआ देवोंसे घिरा हुआ चक्र उसने भेजा। वह भी प्रयत्नपूर्वक चला ||३|| चक्रके पीछे लगे हुए महाभट, हाथी और तुरंग हैं जिसमें, ऐसी तथा रथोंके घूमते हुए पहियोंसे सोको आहत करती हुई सेना चली। जिसमें बैलों, ऊँटों और खच्चरों द्वारा भार ढोया जा रहा है, घोड़ोंके खुरोंसे वनके तृण-तरु चकनाचूर हो गये हैं, मदवाले गजोंके मदजलसे रजोमल शान्त हो गया है, दसों दिशाओंमें मिले हुए लोगोंका कलकल शब्द हो रहा है, जिसके हाथमें कशा, झस, मूसल और तीर हैं, जिसने जनपदोंके पदभारसे धरतीको झुका दिया है, असिवरोंके जलप्रवाहमें पराभव धो दिया गया है, तिलक सहित चूड़ियोंके समूहका खन-खन शब्द हो रहा है, मसृण केशररससे उरतल सुपोषित है, जिसमें पवनसे आहत ध्वजसमूहसे आकाश आच्छादित है, चंचल चामरोंको हिलानेके लिए हाथ उठे हुए हैं, परिमलपर झूमते हुए सुन्दर भ्रमरोंका स्वर हो रहा है, आकाशमार्गसे जिसमें देवों और विद्याधरोंके घर (विमान ) छोड़ दिये गये हैं, जो अमर्ष, कठोर और दुष्टोंकी विजयश्रीका अपहरण करनेवाली है, जिसमें सुरसभा साथ रहती, घूमती और खाती है, जिसमें स्वामीके लिए शुभ करनेवाली कथाएँ कही जा रही हैं, प्रहारसे जो विधुर है, ऐसा मद और भय उत्पन्न करनेवाला राजाका सैन्य स्मरण कर गुहाके मुख-विवरको जैसे निगल रहा है। पत्ता-इसी कारण मानो रास्ता भोगनेवाले शत्रुओंमें महान् और घर आये हुए भरतके लिए डरकर अपनी गुहाके बहाने बहुतसे नागोंसे सुन्दर उसने अपना हृदय दिखा दिया ||४|| काजल और नीलके समान प्रचुर तमपटलसे जिसमें नेत्रोंका मार्ग नष्ट हो गया है, महीधरके ऐसे गुहादुर्गमें सेना सुखसे नहीं जा पा रही थी-यह सोचकर कागणी मणि लेकर सेनाप्रमुखने सूर्य-चन्द्र अंकित कर दिये। वे विवरकी दीवालोंपर इस प्रकार शोभित हुए मानो जैसे राजाकी कोतिकी आंखें हों। किरणसमूहसे उन्होंने अन्धकार-समूह हटा दिया और रात्रिमें दिन अत्यन्त रूपसे सोहने लगा । सेना चलती है। जयका नगाड़ा बजता है, मानो प्रलयकालमें समुद्र गरज रहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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