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________________ १४. ३. १७ ] हिन्दी अनुवाद ३१५ अस्त्रके फेंके जानेपर अपने खुरोंसे वनको रौंदता हुआ अश्व चला। जिसका मुख विश्वविजयके लिए हंसता हुआ है, ऐसा बलमें श्रेष्ठ भी वह नरसमूहके द्वारा नम्र बना दिया गया। तब दण्डरत्नके निष्ठुर प्रहारसे विघटित किवाड़ोंके किंकार शब्दके कोलाहलसे क्षुब्ध और दलित साँपोंके मुखोंसे छोड़ी गयी फूत्कारोंसे विषाग्निकी ज्वाला जल उठी, ज्वालामालाओंसे एक साथ प्रदीप्त और नष्ट होते हुए, हाथियोंके पैरोंकी चपेटसे उछलती हुई मणिशिलाओंके पतनसे क्रुद्ध और गरजते हुए सिंहोंके शब्दोंसे जो भयंकर हो उठा। भयंकर तापके भारसे भरित गुफाओंके भीतरसे निकलती हुई अहीन्द्र सुन्दरियों ( नागिनों) के द्वारा मुक्त सिचय ( वस्त्र, केंचुल ) से प्रकट हुए स्तनोंसे विदारित हृदयवाले रतिरसिक तपस्वियोंके चरित्रभारके हरणको जो धारण किये हुए है। 'हा' रव (शब्द) कहते हुए शबरी पुलिन्दोंके शिशुओंके द्वारा देखे गये सिंह किशोरोंके नखरूपी वज्र कोटिके द्वारा विदारित हरिणोंके रक्तरूपी जलके प्रवाहसे वह गुहाद्वार दुर्गम हो उठा। पत्ता-दग्ध होते हुए पक्षियों, पहाड़ोंके पशुओंके घोषसे वह ( सेनापति) अपनी निन्दा करता है कि वेदनाको नहीं जाननेवाला अचेतन भी यह दण्डरत्नसे ताड़ित होनेपर आक्रन्दन करता है ॥२॥ - तब मंजीर, हार, केयूर और किरीटके चमकते हुए आभूषणोंवाला तथा देवताओंके युद्ध में संघर्षके द्वारा जिसने शत्रुशासन समाप्त कर दिया है, ऐसा देव अहंकार छोड़कर चरणोंकी सेवा चाहता हुआ ऋद्धि और बुद्धिसे सम्पन्न शीघ्र वहां आया। प्रचुर भक्तिका अभिलाषी विजयाधं शैलके अग्रभागका निवासी और शद्ध श्वेत वस्त्रधारण करनेवाला। उसने वीरश्रेष्ठ नरेन्द्रको वन्दना की। चन्द्रमाकी तरह स्वच्छ हार, दिव्यपुष्पदाम, कंकण मुकुट, जलका नीड घट, सफेद धवल प्रशस्त सुन्दर उत्तम वस्त्र, स्वर्णनिर्मित सिंहासन, कमलकी लीलाका हरण करनेवाला स्वर्णदण्डनाल, चामरोंसे सहित निर्मल आतपत्र कि जो मानो कीर्तिरूपी लताका फूल था, जिसका मूल्य समस्त लोक था और जो हास और हंसके रंगका था, राजाको दिया। तीर्थमें जलका स्नान ही मुख्य और मंगलमय होता है । वृक्षोंसे आच्छादित देवदार वृक्षवाले उस भूमिप्रदेशमें वह राजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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