SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९५ १२. २०.३] हिन्दी अनुवाद उरमें चांपकर, लाल-लाल आंखोंवाला मागधेश वसुनन्द उठा। स्वामीको देखकर किसीने भाला ले लिया, कोई 'मारो-मारो' कहता हुआ क्रुद्ध हो उठा। किसीने मुद्गर, भुशुण्डी, फरसा, त्रिशूल, हल और भिन्दिमाल अपने हाथमें ले लिया। किसीने वावल्ल, सेल, झस, शक्ति, मूसल, हल, सव्वल और युद्धकुशल कम्पन ले लिया। किसीने भुजंग, किसीने विहंग (गरुड़), किसीने तुरंग, किसीने मातंग (गज), किसीने जीभ हिलाता हुआ बाघ,. किसीने तीव्र नखोंके समूहवाला सिंह, किसीने ऊंट और श्वापदको प्रेरित किया। कोई तबतक रथसहित युद्ध में दौड़ा। ___घत्ता-जिन्होंने कुलकी शान्ति स्थापित की है ऐसे मागध-मन्त्रियोंने प्रणाम कर उस तीरको उठाया और पूर्ण चन्द्रमाके समान मुखवाले उन्होंने स्वच्छ नेत्रोंसे राजा भरतके उस तीरको देखा ॥१८॥ उसने (मागधेश वसुनन्दने ) उसमें लिखे हुए हस्ताक्षर देखे-"जो देव, मनुष्य, विद्याधर और देशान्तरके विविध निधियोंके स्वामी तथा अपने कालपृष्ठ नामक धनुषपर तीर साधे हुए, ऋषभनाथके पुत्र राजा भरतको नमस्कार नहीं करते, वे निश्चित ही दो खण्ड होकर मरेंगे।" तब अवधिज्ञानका प्रयोग कर और अपने मनमें प्रसन्न होकर, उन्होंने अपने स्वामीको जाकर वह तोर दिखाया और कहा कि "दुष्टजनोंको चूर-चूर करनेवाला चक्रवर्ती राजा धरतीपर उत्पन्न हो गया है। हे मगधराज, युद्धके आग्रहसे क्या? शस्त्र छोड़ो, क्यों ग्रहसे प्रवंचित होते हो। यदि आज आप उसे स्वीकार नहीं करते, तो हे देव, न तो तुम हो और न हम लोग । तुम अकेले नहीं, हे देव, दूसरे भी सैकड़ों देवोंने उसके घरमें दासता स्वीकार कर ली है, जो भाग्यमें लिखित है, उसका क्या विषाद करना? प्रणाम करके राजाधिराजसे भेंट की जाये।" इन शब्दोंसे उसने अपना घमण्ड वैसे ही छोड़ दिया जैसे मन्त्रके प्रभावसे सांप स्थित हो गया हो। बाणकी सरल पंक्तियाँ पढ़कर तथा मन्त्रियोंके वचनोंका विचार कर पत्ता-गवरहित मागध नरेशने विनयभावसे प्रणाम कर और नाना रत्नों और स्तुतिवचनोंसे पूजा कर राजाको उसी प्रकार देखा, जिस प्रकार चक्रवाकके द्वारा सूर्य देखा जाता है ॥१९॥ २० 1:- अपने वैभवसे इन्द्रको विस्मित करनेवाले मगधने हंसकर कहा, "हे महागजलीलागामी आपको जय हो, आप मेरे इस जन्मके स्वामी हैं, इन्द्र और कुबेरके स्वामी आप इन्द्र हैं। शत्रुप्रवर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy