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१२. १८.४]
हिन्दी अनुवाद
धनुर्वेदके अनुसार ज्ञात और निश्चित मानवाला बाण राजा भरतने किसी अनुपम स्थानको लक्ष्य बनाकर प्रेषित किया, मानो कालने भास्वर कालदण्ड प्रेषित किया हो। प्रलयको आगकी लीलावाला वह बाण धम्मुज्झित (धर्म और डोरीसे मुक्त ), कुशीलकी तरह मानो गुणकोटि से ( गुणोंकी परम्परासे मुक्त, डोरी और धनुषसे मुक्त ), विमुक्त वह (बाण) मानो विहंग (पक्षी) की तरह, पिच्छ (पंख और पुंख) से सहित था, सुजनके हृदयकी तरह अत्यन्त सीधी गतिवाला था, परम ज्ञानकी तरह अत्यन्त दूर तक गमन करनेवाला था। शुक्लध्यानकी तरह अत्यन्त शुद्धिवाला था, भुजंगकी तरह अत्यन्त बड़े आकारवाला था, दुष्टके प्रसंगको तरह प्राणोंका अत्यन्त अपहरण करनेवाला था। वह बाण अत्यन्त गुणी ( मुनि और धनुषसे ) से विमुख होकर इस प्रकार गया मानो खोटे शास्त्रोंकी भक्तिसे आहत मनुष्य हो, लोभीके चित्तके समान वह अति लोह घडिउ ( अत्यन्त लोभ, और लोहेसे रचित) था। वह विद्याधरत्वकी तरह मानो आकाशमें अत्यन्त गमन करनेवाला था। मानो चरमशरीरीकी तरह शीघ्र मोक्षगामी था। मानो नदीप्रवाहकी तरह अत्यन्त कठिन भेदनवाला था, वही ( तच्चिय ) नदीप्रवाह और महान् तात्त्विककी तरह ठाणालउ (नावोंसे युक्त और नमनशील ) था, वह मानो हुंकारसे प्रेरित सुमन्त्र था।
पत्ता-भरतने हरित और नीले मृणियोंसे रचित मागधराजके घरमें स्वर्णपुंखसे उज्ज्वल तीर फेंका, जो ऐसा लग रहा था मानो अपनी कान्तिसे काजलको पराजित करनेवाले यमुना नदीके जलमें शतदल कमल खिला हआ हो॥१६॥
भौंहोंके भंगसे भयंकर भृकुटी धारण करनेवाला, विस्फुरित दांतोंसे ओठोंको चबाता हुआ, हजारों देवयुद्धोंमें भयंकर दुर्दशनीय शत्रुओंको क्षय करनेवाला और समुद्रका परिग्रह करनेवाला वह मागधदेव उस तीरको देखकर गरज उठा। वह बोला-"बताओ यमको जीभ किसने उखाड़ी, बताओ क्षयकालकी रेखाको किसने पोंछा ? बताओ नागकुलके वलयके द्वारा गृहीत धरिणीपीठको किसने नष्ट कर दिया? बताओ किसने हाथसे मन्दराचल उठाया? सोते हुए सिंहको किसने जगाया? बताओ आकाशमें जाते हुए सूर्यको स्खलित किसने किया? कौन जीते जी अपने प्राणोंसे विरक्त हो गया? बताओ किसके सिरपर कोआ बोला है? बताओ यमके दाँतोंके भीतर कोन बसा हुआ है ? किसने मेरे मानको भंग किया है ? किसने यहां यह वज्रबाण छोड़ा है ?
घत्ता-जिसने यह तीर फेंका है और युद्ध प्रारम्भ किया है, वह आज मुझसे नहीं बच सकता, अनिष्ट यममुख या भयंकर कानन, दोनोंमें-से एक, निश्चित रूपसे उससे भेंट करेगा ॥१७॥
१८ यह कहकर उसने कुशल आघातसे जिसने योद्धासमूहको नष्ट किया है, जो शत्ररूपी गजके मोतीरूपी दांतोंवाली है, ऐसी भयंकर तलवार इस प्रकार निकाल ली जैसे धारावर्षी मेघजाल हो । मजबूत मुट्ठियोंसे पीड़ित जो दासकी तरह जल धारण करती है, जो विन्ध्याचलके समान वंश ( बांस और कुटुम्ब ) को धारण करनेवाली है, चन्द्रमण्डलके समाव उस तलवारको अपने
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