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________________ १२. १२.२] हिन्दी अनुवाद २८७ रथोंसे संकीर्ण है ऐसे गंगातटके किनारे-किनारे, चक्रवर्तीके सेनापतिके द्वारा प्रेरित चतुरंग सेना रथके पीछे-पीछे चली। राजाधिराज भरत भी गिरिवरपर सिंहकिशोरकी तरह, विजयगिरि नामक गजवरपर आरूढ़ होकर, अपने कन्धोंपर तूणीरयुगल बांधे हुए और हाथमें लिये हुए धनुषकी प्रत्यंचाके शब्दसे मुखर होता हुआ नगाड़ोंके शब्दोंके साथ पूर्व दिशाको ओर चला। __घता-भयंकर उपसमुद्रको पार कर वह फिर स्थलमार्गपर आया। वह राजा पहाड़ोंकी घाटियोंमें बसे हुए गोधन घोषवाले गोकुलोंमें पहुंचा ॥१०॥ जहां अत्यन्त गाढ़ा दही बिलोया जाता है। अत्यन्त घनत्व किसीके लिए भी हितकारी नहीं होता। जहां गोपीने मन्थक ( मथानी ) को खींच लिया है, वैसे ही जैसे गुणोंसे प्रियाके द्वारा प्रिय खींच लिया जाता है । सधन शब्द करते हुए मंदीरक ( सांकल ) से चांपकर पकड़ा हुआ वह मन्थानक घूमता है। "हो-हो, हला, गोपी मेरे साथ रमण करती है। लेकिन यह मथानी तुम्हारी कामपीड़ा शान्त नहीं कर सकती, इसे मत खींच।" रस्सीसे खींची गयी मथानीके द्वारा, मानो इस प्रकार गाया जाता है ? अत्यन्त मथे जानेसे शिथिल शरीर क्या केवल दही ही स्नेह छोड़ देता है, दूसरा कोई स्नेह नहीं छोड़ता? जहाँ तक्र (छाछ ) इसी प्रकार छोड़ दिया जाता है। ग्रामीण जन तक ( तर्क, विचार, और छाछ ) से क्या करते हैं ? जहाँ पथिक घो-दूध पीते हैं, और पथके कामसे मुक्त होकर सोते हैं। जहाँ गोपीने नरप्रमुखको देखकर बछड़ेकी जगह कुत्तेको बांध दिया। अपचित्त ( अस्त-व्यस्त चित्त) और प्रियमें लीन हुई गोपीने घी छोड़ दिया, और तक्र तपा दिया। जहाँ राजाके मुखरूपी कमलसे रमण करनेकी इच्छा रखनेवाली वध् गर्म उच्छ्वासोंके साथ बैठो हुई थी। जहां खोटे राजाओंकी ऋद्धिके समान भैसें, खलों ( खलों और दुष्टों ) के द्वारा दुही जाती हैं। कोई गोपी काहल और वंशीका शब्द सुनती हैं, वह घरका काम नहीं करतीं और सिर धुनती हैं। कोई गोपी कृशोदरी और अनेक बच्चोंवाली होकर भी संकेत स्थानके लिए जाती है । जहाँ क्रीडाका अवकाश देनेवाली ताली बजाते हुए गोप मण्डलाकार होकर रास गाते हैं जहां अपने सागोसे तरुवरोको उखाड़नेवाले वृषभोंके द्वारा गम्भीर ढेक्का शब्द किया जाता है। पत्ता-ऐसे उस गोकुलको छोड़कर, हरिणके सीगों और उखाड़ी हुई जड़ोंवाले शवर पुलिन्दोंसे गहन वनमें जाते हुए उन्होंने पशुओंके मांसाहारों और पहाड़ोंके मकानोंको देखा ।।११।। १२ बौने तथा सघन स्थूल बलसे, जिनके शरीरोंके जोड़ गठित हैं; कठोर बाणोंसे प्रचण्ड धनुष जिनका कुलक्रमागत पितृकुलधन हैं; छोटे स्थूल और विरल दाँतोंसे उज्ज्वल, जिनके मुखपर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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