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________________ १२. १०.११] हिन्दी अनुवाद समतल भूमि दूर-दूर तक फैली हुई थी। कपड़ोंके तम्बू और मण्डप फैला दिये गये थे। जिनके गवाक्षोंसे धूम-समूह निकल रहा था, ऐसे तथा संचार योग्य प्रचुर गन्धवाले निवास बनाये गये । अश्वोंके जीन खोल दिये गये। और ढक्कार शब्दोंसे आते हुए गजोंके भी। भारसे मुक्त है शरीर जिनका, ऐसे बैल भी इच्छापूर्वक चले गये। गधोके लिए शब्द करते हुए गधे भी चल दिये। वृक्षों और घासके लिए दास दौड़ रहे थे। चूल्हों में दी गयी आग जल उठी । नाना प्रकारके भक्ष्यभेद बनाये जाने लगे। कितने ही लोग भोजन कर, तथा शरीरके पसीनेसे रहित होकर, समान दीर्घ पथसे थके हुए, गृहिणियोंके गलेसे लगकर सुखसे सोये हुए थे। हाथियोंको घास देकर सन्तुष्ट किया जा रहा था। घोड़ोंके लिए तृण, भोजन और खाननमक दिया जा रहा था। कोई अपने साथियोंसे पूछ रहा था, कोई लम्बे मार्गके बारेमें बात कर रहा था। कोई राजाके कामको प्रशंसा नहीं करते हुए कह रहे थे कि हम दिन प्रतिदिन एक गांवसे दूसरे गांव कहाँ तक घूमें। यह खच्चर और खच्चरी और चारा लो, ऐसा एकने दूसरेसे कहा। अपनी गरदनें ऊपर करके ऊँट जंगलमें चले गये और वहाँ लताओंके पत्ते तथा पानी लेने लगे। "हे प्रिय, अच्छा हुआ, यात्रासे निर्विघ्न आ गये । तम्बुओंको देखो और शीघ्र आओ।" वेश्याओंके निवाससे सहित, अपने-अपने चिह्नोंसे उपयुक्त, हर्षयुक्त, तम्बुओं और देवोंसे सहित, यह इस प्रकारका स्थान राजाने बनवाया है। इस प्रकार किसी खिन्न व्यक्ति ( सैनिक ) ने कहा। पत्ता-अपने स्थपतिके द्वारा विरचित और मणिसमूहसे विजड़ित सौधतलपर बैठा हुआ राजा भरत ऐसा मालूम हो रहा था, मानो स्वर्गसे स्वयं उतरकर सुरवरोंमें सुन्दर इन्द्रदेव आकर बैठा हो ॥९॥ जितने भी सामन्त और महासामन्त, एवं महामाण्डलीक राजा थे वे भी इकट्ठे हुए। सेनाध्यक्षके द्वारा निर्दिष्ट और राजप्रसादसे पुलकित वे निवासमें ठहर गये। रात हुई, फिर अपनी किरणोंके जालसे चमकता हुआ सूर्य उग आया। गजमद-मलसे मैला होता हुआ, घोड़ोंके से गीला होता हआ, छत्रोंके अन्धकारसे आच्छादित हआ, शस्त्रकी चमकमें दिखाई देता हुआ, झल्लरी और भेरीके शब्दोंसे गरजता हुआ, सुन्दर कामिनी जनोंके द्वारा गाया जाता हुआ, कपूरकी धूलसे धवल होता हुआ, वनकी धूलोंसे ग्रस्त होता हुआ, मरकत मणियोंसे नीला होता हुआ, सानन्द पराक्रमी और स्वाभिमानी वह सैन्य जो महान् भटजनके भारको सहन न करनेके कारण मानो वसुधारूपी वनिताके द्वारा पित्तकी तरह उगल दिया गया हो। जो बैलों, खच्चरों और गधोंके द्वारा मान्य है, नरसमूहों और ऊँटोंके द्वारा अवलम्बित है, और नाना वाहनों तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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