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११. ८.१३ ]
हिन्दी अनुवाद
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रक्तोदा । ये चौदह नदियाँ कही गयी हैं । इनमें पाँचका गुणा करनेपर सत्तर हो जाती हैं । ढाई द्वीप ( जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड और आधा पुष्करद्वीप ) में पांच मन्दराचल हैं जो विजयार्ध पर्वत और विद्याधरकुलोंसे सुन्दर हैं ।
घत्ता — क्षेत्रोंके अन्तर्गत वक्षार गिरीन्द्र, कुण्डल, रुचकगिरि और सुकारगिरि हैं जो अपने विविध शिखरों पर श्रीको धारण करते हैं ॥६॥
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जम्बूद्वीप के बाहर, अपने स्वभावको नहीं छोड़नेवाले बहुत-से अन्तद्वीप हैं। पहला सुसंकीर्णं, दूसरा रुन्द | वे शराव (सकोरे) के आकार के हैं, और उत्तम, मध्यम तथा जघन्य इन तीन भेदोंसे युक्त कर्मभूमि भावसे ( अपनी चेष्टासे फलादिका आहार ग्रहण करनेवाले ) विभक्त हैं । लवण समुद्र में अड़तालीस ओर कालोद समुद्र में भी उतने ही देश हैं। सैकड़ों योजनोंके मानसे विशिष्ट, कुभोगभूमियोंके आवास वहाँ हैं । रतिमें अनुरक्त वहाँ दो-दो स्त्री-पुरुष हैं, भद्रस्वभाव और सुन्दर शरीरवाले, आभरण और वस्त्रोंसे रहित, काले-सफेद-हरे और लाल । रम्य-सौम्य और नित्यप्रसन्न, जिनका जिननाथने शास्त्रोंमें कथन किया है ।
घत्ता - वहां कोई एक रोमधारी है तो कोई पूँछ और सींग धारण करनेवाला है । ये पूर्वं दिशामें शोभित होते हैं । उत्तर दिशामें निर्भाष ( बिना भाषाके ) मनुष्य होते हैं ||७||
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शष्कुलिके समान कानवाले, कानोंके आच्छादनवाले, लम्बे कानवाले और खरगोशके कानवाले खोटे मनुष्य भी रहते हैं । अश्वमुख, गजमुख और मत्स्यके समान श्याम मुख, दर्पणमुख, मेघमुख, वानरमुख, सिंहमुख, मेषमुख और वृषमुखवाले, जो सत्रह प्रकार के फलोंका आहार ग्रहण. करते हैं। सभी अत्यन्त सीधे और कमलके समान आँखोंवाले, एक पैरवाले पहाड़ी मिट्टीका भोजन करते हैं । अठारह जातियोंवाले ये छियानबे क्षेत्रोंमें विभक्त हैं । ये एक ही पल्य जीवित रहते हैं और मरकर भवनवनवासी होते हैं । हरित, सफेद, लाल और पीले रंगोंके रत्नोंसे विजड़ित तीस भोगभूमियां फैली हुई हैं जिनमें हार, डोर, कंकण और कुण्डलोंको धारण करनेवाले दिव्य वस्त्रधारी सिरपर शेखर बांधे हुए देव रहते हैं । मद्यांग, वीणा-पटहांग ( तूर्यांग), विविध भूषणांग, ज्योतिरंग, भाजनांग, भोजनांग, भवनांग, अम्बरदीपांग ( प्रदीपांग ) और कुसुममाल्यांग, कल्पवृक्षोंसे, जिसकी धरती शोभित है । और जहाँ मनुष्य निरन्तर भोग करते रहते हैं । अधम, मध्यम और उत्तम सुखोंसे युक्त सुन्दर स्वभाववाले और सुन्दर अंगोंवाले होते हैं। एक-दो या तीन पल्य जीवित रहकर और च्युत होकर कल्पवासमें उत्पन्न होते हैं ।
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