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१०.१३.१३] हिन्दी अनुवाद
२३३ प्राण होते हैं, इस प्रकार विमल ज्ञानवाले महामुनि कहते हैं। पांच इन्द्रिय जीव संजी-असंज्ञो दोनों होता है, जो मनसे रहित हैं, वे निश्चितरूपसे असंज्ञो होते हैं, वे पापी शिक्षा और बातचीत ग्रहण नहीं कर पाते, अज्ञानके आच्छादनके कारण उनका मूढभाव दृढ़ होता है। असंज्ञो पांच इन्द्रिय पर्याप्तक जीवके नौ प्राण होते हैं। सम्पूर्ण छह पर्याप्तियों स्पर्श, लोचन और श्रोत्रों, मन-वचन-कायरसना-घ्राण-श्वासोच्छ्वासों और आयु इन दस प्राणोंसे संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवित रहते हैं। दुदर्शनीय नाना प्रकारसे उनका मैं वर्णन करता हैं। जलचर पांच प्रकारके होते हैं-मछली, मगर, उहर, कच्छप और सुंसुमार । नभचर भी सम्पुट, स्फुट और विकट पक्षवाले होते हैं। दूसरे धने चमड़े और विलोम पक्षवाले होते हैं। थलचर चौपाये चार प्रकार के होते हैं एक खुर, दो खुर, तथा हाथी और कुत्तोंके पैर वाले। उरसर्प, महोरग और अजगर इनका क्या, हाथी इनके कौरमें समा जाता है। भुजसोका भी भेदोंके साथ वर्णन किया जाता है। ये सर ढुंदर और गोधा नामवाले होते हैं।
पत्ता-जलचर जलोंमें, नभचर वृक्षों-पहाड़ोंमें और थलचर ग्राम-नगरोंमें निवास करते हैं। द्वीप और समुद्रमण्डलके मध्य जिनोंके द्वारा प्रथम द्वीप कहा जाता है ।।१२।।
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पिछले गणितकी मर्यादाके विचारसे एक लाख योजन विस्तारवाला अत्यन्त विशाल जो असंख्य द्वीप और श्रेष्ठ सागरोंके वलय आकारको धारण करनेवाला। जम्बद्वीप, धातकी खण्ड, श्रेष्ठ पुष्कर द्वीप, मृगचण्ड-मदिर-खीर और घृत-मधु नामवाले। नदीश-अरुण-अरुणधाम, कुण्डलसंज्ञ, संख रुजग, भुजगवर और भी कुसग, तथा क्रौंच, इस प्रकार द्वीप समुद्र हैं, जो दुगुने विशाल और अपना आकार प्रकट करनेवाले हैं। इन द्वीपोंमें तिथंचोंका निवास है। अब मैं जलचर, थलचर, नभचर और विकलेन्द्रियोंके पंचेन्द्रियों के शरीरका प्रमाण कहता हूँ। पद्म मत्स्य, जिसकी एक हजार योजन ऊंचाई कही जाती है ऐसे विशाल शरीरवाला दिखाई देता है। और भी कोई वरिष्ठ दुकरण नामका है, जो बारह योजन लम्बा देखा गया है। त्रिकर्णवाला तीन कोशका होता है । चार कानोंवाला एक योजनका होता है।
पत्ता-लवणसमुद्र, कालसमुद्र और विशाल स्वयम्भूरमण समुद्रमें मत्स्य होते हैं, शेष समुद्रोंमें नहीं होते। हे श्रेणिक, जिनवरके द्वारा कहा गया कभी गलत नहीं हो सकता ॥१३।।
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