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________________ १०.५.८] हिन्दी अनुवाद २२३ तर्कोको जीत लिया गया है ऐसे उत्तर परवादी भी नहीं देते। प्रतिभासे आहत वे भयसे कांप उठते हैं और अखण्ड मौन धारण करते हैं । अविकारी, अपनी प्रभासे पूर्ण चन्द्रको फोका करनेवाला उनका मुखकमल चारों दिशाओंमें दिखाई देता है । बारह कोठोंमें जो बैठते हैं वे कहते हैं कि मुख मेरे सामने है। __घत्ता-हाथ जोड़े हुए प्रणत सिर गर्वसे रहित स्वच्छ, नष्ट हो गये हैं पाप जिसके, ऐसी प्रजा परम्पराके अनुसार कोठेमें बैठ गयी ॥३॥ गणधर कल्पवासी देवोंकी स्त्रियाँ । आर्यिका संघ, ज्योतिष्क देवोंकी स्त्रियां; व्यन्तरदेवोंकी स्त्रियां, और भवनवासी देवोंकी देवियोंकी पंक्ति । फिर दस कुमार, फिर व्यन्तरेन्द्र । फिर ज्योतिषदेव, कल्पवासी देव और नरेन्द्र । फिर तिर्यंच । विकट दाढ़ोंसे विकराल सिंह, गज, शार्दूल, कोल और गणधर आदि क्रमसे बैठते हैं, जिनभक्तिसे भरित और श्रमसे भूषित । नव-नव पांच प्रकारसे प्रसिद्ध अपने-अपने विमानोंमें बैठे हुए अहमिन्द्रोंने रागको ध्वस्त करनेवाले सिंहासन छोड़कर जिनेन्द्र भगवान्की स्तुति की। अपने यशरूपी सूर्यसे विश्वरूपी कमलको खिलाते हुए, अपने कुलका नाम और चिह्न बताते हुए, मुकुटोंकी कतारोंसे महोतलको चूमते हुए, पुष्पोंकी चंचल मालाएं हिलाते हुए, गाथा और स्कन्धक गाते हुए, सैकड़ों सुन्दर स्तुतियोंका उच्चारण करते हुए सौधर्म और ईशान इन्द्रों तथा दूसरे देवप्रमुखोंके द्वारा उनको स्तुति की गयी। पत्ता-दुर्मद कामदेवको जीतनेवाले दोष और क्रोधरूपी पशुपाशके लिए अग्निके समान समस्त विमल केवलज्ञानके घर और मिथ्यादर्शनादिका अपहरण और सम्यक् दर्शनादिका उद्धार करनेवाले हे विधाता आपकी जय हो ॥४॥ कंकाल, त्रिशूल, मनुष्यकपाल, सांप और स्त्रीसे रहित, आपकी जय हो। हे भगवान्, सन्त, शिव, कृपावान्, मनुष्योंके द्वारा वन्दित चरण और दूसरोंका भला करनेवाले आपकी जय हो। सुकवियोंके द्वारा कथित अशेष नामवाले, भयको दूर करनेवाले, अपने अन्तरंग शत्रुओंके लिए भयंकर आपकी जय हो । स्त्रीसे विमुक्त संसारके लिए प्रतिकूल त्रिपुर ( जन्म, जरा और मरण ) का अपहरण करनेवाले, धैर्यके धाम हे हर आपकी जय हो। शाश्वत स्वयम्भूभावको प्रकट करनेवाले और पदार्थों के ज्ञाता आपकी जय हो; शान्तिके विधाता और सुखकर आपकी जय हो, कुवलय ( पृथ्वीमण्डल, कुमुदमण्डल) को कान्ति प्रदान करनेवाले आपको जय हो। उग्रतपके लिए अग्रगामी आपकी जय हो, हे भवस्वामी और जन्मको शान्त करनेवाले आपकी जय हो। महान् गुणसमूहके आश्रय हे महादेव, आपकी जय हो। प्रलयकालके लिए उनकाल महाकाल आपकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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