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९.२९.१५]
हिन्दी अनुवाद
२१७
पड़े हुए हंसों, क्षीरसागरकी आन्दोलित लहरों, कीर्तिके चंचल अंगों, और दयारूपी लताके फूलके समान दिखाई दिये । लक्ष्मीका जो-जो सुन्दर अंग है और विश्वमें जो-जो भला है, वह सब वहीं समर्पित कर दिया । इन्द्रकी रचनाका वर्णन कौन कर सकता है ? अपनी प्रभासे सूर्य और चन्द्रमाको निस्तेज करनेवाला - समवसरण पाँच हजार धनुष ऊंचाईके मानसे आकाशमें स्थित था । हे श्रेणिक, यह मैंने जिनवरके ज्ञानसे कहा ।
घत्ता--जो ऊँचाई जिनेन्द्रके द्वारा पाँच सौ धनुष कही गयी है वनवृक्ष गिरि (पर्वत) खम्भे ( पताकाओंके ), उससे ( ऋषभ जिनकी ऊँचाईसे) बारह गुना अधिक ऊँचे हैं ||२८||
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और इनकी मोटाई (ऊँचाईसे) आठ गुनी जाननी चाहिए। खम्भों और वेदिका के विषय में भी यह समझना चाहिए। इस प्रकार कुबेरने जब रचना की, तभी इन्द्रने आदरणीय जिनको नमस्कार किया - "हे जिन, कृष्ण, रुद्र, चतुरानन ! आपकी जय हो, तपश्रीरूपी रामासे रतिसुख माननेवाले आपकी जय हो । कलिके पापोंरूपी जलोंको सोखनेके लिए सूर्य, आपकी जय हो, सूर्यके समान शरीर कान्तिवाले आपकी जय हो, मनके अन्धकारभारका हरण करनेवाले आपकी जय हो, देवोंके किरीट और मुकुटोंसे अलंकृत चरण आपकी जय हो । त्रिशल्यरूपी लतावनका उच्छेदन करनेवाले आपकी जय हो, कन्दर्पके दर्परूपी भटका मर्दन करनेवाले आपकी जय हो, क्रोधरूपी कलंककी कीचड़ दूर करनेवाले आपकी जय हो, मानरूपी पर्वत के शिखर चूर-चूर करनेवाले आपकी जय हो, मायाके पापभावको नष्ट करनेवाले आपकी जय हो । लोभरूपी अन्धकारको उड़ानेवाले आपकी जय हो । तृष्णारूपी राक्षसीको मारनेवाले आपकी जय हो । सात भयरूपी कुरंगों का विदारण करनेवाले आपकी जय हो । मदरूपी मैगलके लिए सिंहके समान आपकी जय हो । विश्वबन्धु और तीन गर्वोको नष्ट करनेवाले आपकी जय हो । प्रथम पुरुष, परमात्मा, शंकर, ऋषभनाथ और तीर्थंकर आपकी जय हो ।
घत्ता - भरतको आलोकित करनेवाले तथा सूर्य-चन्द्रके समान शोभित पचासों इन्द्रोंने इस प्रकार जिनेश्वरकी वन्दना की || २९ ॥
इस प्रकार श्रेष्ठ पुरुषोंके गुण और अलंकारोंसे युक्त इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका ऋषभ केवलज्ञान उत्पत्ति नामका नौवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥९॥
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