SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९. १७.११] हिन्दी अनुवाद २०३ तब ऋषभ जिनने तीन लोकोंके एक स्कन्धके रूपमें देखा । अन्धकार और प्रकाशसे रहित अलोकाकाशको ( देखा )। क्रमसे अर्थों की प्रतीति करानेवाली इन्द्रियोंकी बाधासे रहित तथा भावाभाव प्रमाणवाले एक केवलज्ञानसे वह सूक्ष्म दूर और पासको द्रव्योंको देख लेते हैं और सबको जान लेते हैं। प्रचुर किरण परम्परासे जिस प्रकार सूर्य शोभित होता है, उसी प्रकार केवलज्ञानसे केवली ऋषभ जिन शोभित हैं। उस अवसरपर बोस, तीन और जो दूसरे नौ कहे जाते हैं, गवं नहीं सहन कर सकनेवाले ऐसे अनिन्द्य देवेन्द्रोंके आसन कांप उठे। शाखाओंके हाथोंवाले कल्पवृक्ष नाच उठे। स्वर्ग-स्वर्गमें उत्पन्न हो रहे, दसों दिशापथोंको आपूरित करनेवाले घण्टोंके टंकार-शब्दोंके साथ, शाखाओंके हाथोंवाले कल्पवृक्ष जैसे नृत्य करते हैं और पुष्पोंका विसर्जन करते हैं। ज्योतिषवासी देवोंके द्वारा आहत नगाड़ोंकी ध्वनियोंसे कानोंको कुछ भी सुनाई नहीं देता। व्यन्तर देवोंने पट-पटह बजाये, सिंहनाद और गजनाद होने लगा। शंखोंकी ध्वनिसे नाग क्षुब्ध हो गये । इसी प्रकार एकसे दूसरे देव सम्बोधित हुए। पत्ता-अनन्त गुणोंसे युक्त ज्ञानरूपी चन्द्रके उदित होनेपर बहुविध तूर्योंके आहत होनेपर विश्वरूपी समुद्र गरज उठा ॥१६॥ १७ तब इन्द्रने अपने मनमें विचार किया और भ्रमर समूहको प्रसन्न करनेवाला ऐरावत गजेन्द्र वेगसे वहां पहुंचा। जिसकी कान्ति हार, नोहार, गंगा और तुषारके समान उज्ज्वल है; जिसके नख अर्धेन्दु और विद्रमके समान लाल हैं; जिसका गंडस्थल, कणंतलसे झिरते हए मदजलसे काला है, जिसका कुम्भस्थल सुमेरु पर्वतको शिखरके समान है, जो कामको चिन्ताके समान गतिवाला, कामरूप और चंचल है। जिसमें प्रबल प्रतिपक्षको सेनाके दलनका दुर्दम बल है, जो कण्ठ और कपाल प्रदेशमें गोल आकृतिवाला है; जो दशनों और दोनों नेत्रोंसे मधुपिंगल है, जो लाल तालु और मुखवाला है; सुन्दर और तुच्छ उदरवाला है, तथा दीर्घ कर और अंगुलियोंवाला । सरोवरके समान जिसकी श्रेष्ठ सूंड है । जिसकी दीर्घ शिश्न और दोघं चिबुक है । जिसकी दीर्घ पूंछ और दीर्घ निःश्वास हैं। जिसके कानोंके पल्लवोंसे आहत पवनसे मधुकरकुल गिर पड़ता है, जिसके चलने और मुड़नेसे पैरोंकी श्रृंखलाएं झनझना उठती हैं, धनुषवंशीय, जो दुन्दुभियोंके समान महान् स्वरवाला है। जिसपर घण्टोंकी ध्वनियां हो रही हैं, जिससे दिग्गज भयभीत हैं, जिसने शीत्कारके जलकणोंसे देवसमूहको आद्रं कर दिया है, जो लक्षणों, व्यंजनों और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy