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________________ ९.१०.१२] हिन्दी अनुवाद १९५ इस प्रकार उस युवराजने दानकर्ता, दातव्य पात्र और व्यवहारका सारमार्ग समग्ररूपमें कहकर पवित्र धोये हुए दिव्य वस्त्र पहनकर जलसे भरा, पत्तोंसे ढका, भुंगार हाथमें लेकर, दी गयी जलधारासे तापको दूर कर, जिसे सद्धर्म और श्रद्धाके वशसे भाव उत्पन्न हो रहे हैं, पूर्वजन्मके स्मरणसे जिसे पूर्वजन्मका मुनिदानकर्म याद आ गया है, जो श्रेष्ठ चरम शरीरी है, जिसने जन्मका उच्छेद कर दिया है, प्रिय कहने और देखनेसे जिसे स्नेह उत्पन्न हो गया है, जो धरतीको सन्तोष देनेवाला गुणरूपी रत्नोंका घर है, जिसके कान, ऋषिके द्वारा कथित शास्त्रोंकी सूचीसे छेदे गये हैं, जो चन्द्राकं चारित्र्यसे शोभित शरीर हैं, ऐसे कुरुजांगल राजाके अनुज मधुर और कोमल न्यायवाले, श्रेयांस राजाने आये हुए उन गुरुको मस्तक झुकाकर 'ठा' (ठहरिए ) कहा। रतिरूपी कुमुदिनीको सन्तापदायक विश्वकमलको खिलानेवाले हतमलिन वह ऋषिरूपी सूर्य अपने मन में सोचते हैं कि आहारसे शरीर है, उससे तपश्चरणका निर्वाह होता है, तपश्चरणसे ताप और क्षमासे पापका नाश होता है। पाप नष्ट होनेपर महाज्ञान केवलज्ञान उत्पन्न होता है, और उससे अविनश्वर परम सुख होता है और मुनि निर्वाण-लाभ प्राप्त करता है। पत्ता-इस प्रकार विचारकर तपसे विशुद्ध पात्र वे वहाँ ठहर जाते हैं। और पुण्य विशेषके वशसे श्रेयांस उन्हें पा लेता है ॥९॥ इस प्रकार भुवननाथ किसके भवनमें ठहरते हैं, जन्मान्तरके अमोघ तपको किसने पहचाना। कुरुनाथने नवस्वर्णके घटके भीतरसे लाया गया पानी छिड़का। यश और चन्द्रकिरणोंके समान धवलित कुरुवंशके श्री श्रेयांसने पैरोंका प्रक्षालन किया और जन्म, जरा तथा मृत्युकी आपत्तिका हरण करनेवाले शुभकारक चरणजलकी वन्दना की। इन्द्र, चन्द्र और नागेन्द्रोंके लिए प्रिय आदरणीय ऋषभको ऊँचे आसनपर बैठाया गया। उछलते हुए हिमकणोंवाली जलधाराओं, भ्रमरोंको गुंजारसे युक्त सिन्दूरों और मन्दारपुष्पों, नाना गन्धवाले अक्षतों, दीपक चरुओं, धूपांगारों, करमर माडलिंगों और मालूरों, आम्रफलों, जम्बूजंबीरों, पत्रों, पूगफलों और कपूरोंसे, नूपुरके समान कामदेवकी शृंखलासे च्युत, परमेष्ठीके चरणकमलकी पूजा की। फिर भावपूर्वक प्रणाम कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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