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________________ ८.१५.७] हिन्दी अनुवाद भूतलपर ऐसे लोग विरल हैं जो सुधोजनोंमें रत, दूसरोंके उपकारमें चेष्टा करनेवाले और धीर होते हैं, एक या दो। पातालके राजा नागराज धरणेन्द्रके समान भला आदमी नहीं है। पश्चिम दिशाके मुखसे प्रारम्भ होनेवाली दक्षिणश्रेणीको पुराणावलीको मैं अच्छी तरह जानता हूँ, और उनकी नामावलीको कहता हूँ। अर्जुनी-वारुणी वैरि-सन्धारिणी, और भी कैलासके पूर्वको वारुणी, विद्युद्दीप्त नगर, गिलगिल (गिलगित ) नगर, चारुचूड़ामणि, चन्द्रमाभूषण, वंशवक्त्र, कुसुमचूलपुर, हंसगर्भ, मेघनामपुर, संकर, लक्ष्मी, हयं, चामर, विमल, मसुक्कय, शिवसम मन्दिर, सिद्धार्थ, सर शत्रंजय, केतमाल-इन्द्रकान्त नभानन्दन, अशोक, बीतशोक, विशोक, शुभालोक, अलकतिलक, नभतिलक, सगन्धर्व, मुक्तहार, अनिमिष दिव्य, अग्निज्वालापुर, गरुज्वालापुर, श्रीनिकेत, जयश्री निवासपुर, रत्नकुलिश, वरिष्ठ, विशिष्टाशय, द्रविण जय सभद्र और भद्राशय, फेनशिखर, गोक्षीरवर शिखर, वैरि-अक्षोभ शिखर, गिरिशिखर, धरणीधारिणी, विशाल सुदर्शनपुर, दुर्गय, दुर्धर, हारिमाहेन्द्र, विजयनाम और फिर सुगन्धिनीपुर और भी रत्नपुर ये साठ नगर, साठ करोड़ गांवोंके साथ, सन्तुष्ट मनोज्ञ तथा सुविशिष्ट और शुभ करनेवाले ( नागराज धरणेन्द्रने)। पत्ता-नृपश्री और खेचरोंसे युक्त धन-कण और जनसे परिपूरित ये नगर ऋषभके प्रसादसे विनमिको प्रदान किये गये ॥१४॥ १५ वह विद्याधरोंका प्रिय स्वामी हो गया, वह अपने हितैषियोंके साथ स्नेहबद्ध रहने लगा। सुजनोंके उद्धारभारको धारण करनेके लिए उद्यत वह धरणेन्द्र उन दोनोंसे पूछकर अपने घर चला गया ॥१॥ भुवनके मण्डन अरहन्तदेव हैं, मानवियोंका मुखमण्डन कामदेव हैं। वेश्याका मण्डन निश्चय ही वेश्यावृत्ति है; व्यवहारीका मण्डन त्यागवृत्ति है; कुलका मण्डन शील है, शास्त्रका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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