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________________ ८. १३. २४ ] हिन्दी अनुवाद १७७ जहाँ पथिक राखोंके मण्डपोंके नीचे सोते हैं और द्राक्षारस पीते हैं। जहां बैलोंके द्वारा संवाहित यन्त्रोंके द्वारा पेरा गया पौंडों और ईखोंका रस बह रहा है। जिसे कविके काव्य रसकी तरह जन तबतक पीते हैं कि जबतक तृप्तिसे उनका सिर नहीं हिल जाता। जहां तोते पके हुए धान्योंके कणोंको चुगते हैं और कृषक-स्त्रियोंका दौत्य कार्य करते हैं। पत्ता-जहां कमलिनी बहुत-से कमलोंसे दिनमें इस प्रकार शोभित है मानो सुन्दर मधुर ध्वनिमें सूर्यका गुणगान कर रही हो ॥१२॥ कंगन-हार-दोर और कटिसूत्रसे भूषित, नित्य गन्ध-धूप और पुष्पसमूहसे सुवासित वहाँके लोग जो विद्याओंसे सम्पादित लक्ष्मीका उपभोग करते हैं और जो सुख प्राप्त करते हैं वह किसे मिला ? उसकी दक्षिण श्रेणीमें कुसुमित नन्दन वनोंसे व्याप्त, क्रीड़ा-गिरीन्द्रोंके शिखरोंसे उन्नत तीन-तीन खाइयोंसे घिरे हुए, हवासे उड़ती हुई ध्वजमालाओंसे शोभित बहुद्वार और गोपुरवाली अटालिकाओंसे यक्त. स्वर्ण और रत्नोंसे निर्मित प्रासादोंवाले. मख्य शालाओं और तोरणोंसे अंचित और यशमें प्रसिद्ध, अपने सौन्दर्य-समूहसे सुरवरोंको मोहित करनेवाले ये पचास पुरवर हैं। पहला किन्नर, दूसरा नरग्रीव, फिर बहुकेतु, फिर पुण्डरीक नगर, फिर सुन्दर हरिकेतु, श्वेतकेतु, फिर सारिकेतु और नीहारवणं । श्रीबहु, श्रीधर, लोहाग्रलोल तथा एक और स्वर्गकी तरह आचरण करनेवाला अरिंजय। वज्रार्गल, वज्रविमोद और धरतीमें श्रेष्ठ विशाल जयपुर। सोलहवीं भूमि शकटमुखी है, और भी चतुर्मुखी बहुमुखी नगरियाँ हैं, जिन्हें योगी जानते हैं। समविरागसे प्रचुर विद्याधरोंकी जन्मभूमि और विलासयोनि आखण्डल नगरी है, दो और हैं अपराजित और कांचीदाम; संविनय, नभ और क्षेमंकरी ये तीन नगरियां और हैं; झसइंध, कुसुमपुरी, संजयन्त, शुक्रपुर, जयन्ती, वैजयन्ती, विजया, क्षेमंकर, चन्द्रभारा ( सप्ततल भूमिनिवास), रविभास, सुविचित्र महाघन, चित्रकूट, और भी त्रिकूट, वैश्रवणकूट, शशिरविपुरी, विमुखी, वाहिनी, सुमुखीपुरी और नित्योद्योतिनी भी। और उसके बीच में रथनूपुर चक्रवालपुर है। उसमें समस्त विद्याधरोंके स्वामीश्रेष्ठ नमिको नागराजने उत्सव कर जय-जय मंगलके साथ प्रतिष्ठित कर दिया। धत्ता-नगरोंसे विभक्त एक-एक नगरी करोड़ों ग्रामोंसे प्रतिबद्ध थी। इस प्रकार नाभेय ऋषभनाथकी स्तुति करनेवाले नमि राजाको धर्मसे सम्पत्ति फिर हुई ॥१३॥ २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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