SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 44९] हिन्दी अनुवाद १६९ नहीं होता । तब ( नागराजने जिसमें नागराजका स्मरण है ऐसा निर्गमन ( कूच ) किया। जिसमें फैले हुए फण समूहोंके फूत्कारसे धरती सहित पहाड़ोंको हिला दिया गया है, महीधरकी बड़ी-बड़ी गुफाओंके हिलनेसे क्रूर सिंहवर बाहर निकल पड़े हैं, जिसमें सिंहोंकी गर्जनाओंके शब्दोंसे मत्त हाथी त्रस्त और नष्ट हो गये हैं। हाथियोंके चंचल पैरोंके आघातसे स्पष्ट रूपसे वृक्ष उखड़ गये हैं। वृक्षोंके स्कन्धोंके बन्धोंके तीव्र संघर्षणके कारण वृक्षोंसे आग प्रज्वलित हो उठी है, आगके स्फुलिंगों और ज्वालावलियोंसे समस्त कानन जल चुका है, जिसमें काननमें बैठे हुए मुनियोंके सन्तापसे देवता आशंकित हो उठे हैं। देवजनोंके द्वारा भरित मेघोंकी जलधाराओंसे विशाल अम्बर आपूरित है। आकाशतलमें चमकते हुए विद्युद्दण्डवाले इन्द्रधनुषसे रंग-बिरंगापन है। जिसमें रंग-बिरंगे दिव्य वस्त्रोंसे विस्तीर्ण चंदोवोंसे रथ आच्छादित हैं, जिसमें रथोंके तल भागोंसे लगे हुए विषधरोंके मुखोंसे विन्ध्याके चन्दनवक्ष चुम्बित हैं, जिसमें चन्दन-पुष्प-केशर-फल-दल-जल और अक्षतसे पूजा की गयी है, जिसमें पूजाको कामनासे नागराजकी पत्नी पद्मावतीके द्वारा सरस नृत्य प्रारम्भ किया गया है। जिसमें नृत्यमें मिली हुई सुन्दर देवांगनाओंकी करधनियां च्युत हैं, जो करधनियोंसे लटकती हुई किकिणियोंकी कलकल ध्वनिसे कोमल है। इस प्रकार वर-विवर कुहर वृक्ष आकाशतलको कम्पित करनेवाले, तथा बिकट फनोंपर अधिष्ठित चूड़ामणिपर पृथ्वीमण्डलका भार उठानेवाले, प्रभुके चरणकमलोंमें नत नमि-विनमि राजाओंको आश्चर्य प्रदान करनेवाले, नागराजने शीघ्र आकर ऋषभनाथके दर्शन किये। ___ पत्ता-आकर, फन मोड़कर लाखों स्तुतियों और मुंहमें घूमती हुई, अक्षरोंको तरह सुन्दर दस हजार जिह्वाओंसे स्तुति की। यह भुवनरूपी वन, जो कान्ताओंका मुख देखनेवाला, भोगका लालची और मैला है, इसे मोह जलाकर खाक कर देता। यदि तुम्हारे वचनरूपी जलसे यह नहीं सींचा जाता तो कामरूपी आगसे प्रदीप्त यह विश्व कैसे जी सकता है ? आप मृहस्थाश्रमको दूषित करनेवाले, अपने आगमको भूषित करनेवाले, बुद्धिके मैलको नष्ट करनेवाले, महातलका पोषण करनेवाले, मदरूपी गजको २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy