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८.२.१८]
हिन्दी अनुवाद बीता अन्तर रखकर, छिद्र रहित ओठपुटसे मुखको बन्द कर, मुखपर आश्रित नाकपर नेत्रोंको धारण कर, भ्रूभंग और कटाक्षोंके प्रसंगोंसे रहित, नागेन्द्रों, विद्याधरेन्द्रों और नरेन्द्रों द्वारा पूजित, निर्द्वन्द, आलस्यसे रहित लम्बे हाथ किये हुए मनुष्य-श्रेष्ठ वह जिनवरेन्द्र देवोंके द्वारा संस्तुत थे।
धत्ता-श्रेष्ठ शरीरको शोभामें जो मानो कंचन गिरिके समान थे पापोंका नाश करनेवाले वह जगद्गुरु इस प्रकार स्थित थे मानो वह स्वर्ग और मोक्षके लिए चढ़नेका मार्ग हो ॥१॥
जिन महारथियोंने उनके साथ व्रत ग्रहण किये थे, विषयोंके वशीभूत वे प्यास-भूखके सन्तापसे शोषित तथा भीषण बाघों, सिंहों और शरभोंके द्वारा सन्त्रस्त होकर कुछ ही दिनोंमें परीषह नहीं सहनेके कारण शीघ्र भ्रष्ट हो गये। शास्त्रोंका अभ्यास नहीं करनेवाले महामन्द बुद्धि तथा श्रमसे अवरुद्ध शरीरवाले वे इस प्रकार कहने लगे, "न स्नान, न फूल, न भूषा और न वास, प्रभु न पानी लेते हैं और न आहारका कौर । वह महान् शीत और उष्ण हवाके द्वारा भी नहीं जीते जाते और न नींद, भूख और प्याससे श्रान्त होते हैं। किसी अनुचरसे न बोलते हैं और न किसी भृत्यको देखते हैं, अपने हाथ ऊपर किये हुए वह इस प्रकार नित्य स्थित रहते हैं। मैं नहीं जानता कि वह अपने चित्तमें क्या सोचते हैं ? मुझे अत्यन्त दुःसाध्य काममें लगा दिया है। स्पष्ट ही वह वज्र शरीर हैं, उनके पैर नहीं दुखते। राजाधिराज वह कुछ भी उन्मान नहीं करते। अरे, इससे इसका क्या होगा? वनमें हम किस प्रकार दिन-रात बितायें? फिर ये नगर जायेंगे या नहीं जायेंगे ? सुन्दर राज्य करेंगे या नहीं करेंगे ? न तो कान्ता और कुटुम्बके द्वारा उनमें मोह उत्पन्न होता है, और न वह सिंह तथा पंचाननसे डरते हैं ? वह ऐसे वटवृक्षकी तरह दिखाई देते हैं जो जटारूपो जाल धारण करता है, अपने प्रारोहोंसे शोभित है, और जिसके शरीरपर सर्प व्याप्त है । मनुओंके द्वारा पूज्य, मनुष्यों के निर्माता मनुष्यश्रेष्ठ यह देवदेव आदि ब्रह्मा हैं। धैर्यधोरोंके भी धैर्यका अपहरण करनेवाला इनका ऐसा अत्यन्त दुर्वह सुन्दर चारित्रभार है।
___घत्ता-जहां अत्यन्त अतुल बलवाले धवल (बैल) ने अपने खुरोंसे दुर्गको खोद डाला, वहां गरियाल बेल एक भी पैर नहीं रख सके बा२।।
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