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________________ सन्धि ८ सिंहासन, नरपतिशासन, महीतल और शरीरका विचार नहीं करते हुए, गुणवती तपोलक्ष्मीरूपी कान्ताके लिए उन्होंने अपने आपको सौंप दिया। दूरसे छोड़ दिया गया है परिग्रह जिसमें, तथा जो सन्तोष देनेवाला है, ऐसे परम दिगम्बर स्वरूपको धारण कर, शरीरकी ममता छोड़नेवाले महामुनि ऋषभ, तपस्यारूपी कान्ताके लिए, एकनिष्ठ होकर ध्यानालयमें चले गये। पुराने आचरित चरितोंकी याद कर, लक्ष्मी तथा धरतीका परित्याग कर, मन मारनेवाले कामका अन्त कर, अत्यन्त सत्य तत्त्वका रहस्य समझकर, शरीरका पोषण करनेवाली इन्द्रियोंको जीतकर, मदकी सेना और अन्धकारको नष्ट कर, गृहवासके बन्धनसे निकलकर, विघटित होते हुए मनको धारण कर, लोभ और मोहके साथ वैरका अन्त कर, नारीको अपनी मां और बहनके समान समझकर, शंका छोड़कर स्वयं शिक्षाओंको समझते हुए, श्रुत वचनोंवाली जैन दीक्षा लेकर, छह माहकी मर्यादावाला कठोर अनशन लेकर, मेरुके समान धीर और गम्भीर, पवित्र दोनों पैरोंके मध्य एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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