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________________ ८. २६. २०] हिन्दी अनुवाद १५५ महामुनियोंके योग्य था, जो पापभावका नाश करनेवाला था, जिसमें फलोंके ऊपर गिरते हुए बाल वानरोंकी आवाजें हो रही थीं, जो अपनी प्रियतमाओंसे रहित कामुकोंके लिए बाणभेदन करनेवाले थे, जिसमें लतागृहोंमें रहनेवाली किन्नरियोंसे मनुष्य अनुरक्त हैं, अशोक और चम्पा वृक्षोंकी अत्यन्त रमणीय शोभासे नया दिखाई देता था, जो उगे हुए बालकन्दोंके अंकुरोंसे कोमल है, जहाँ कुसुमोंके परागसे मिश्रित जल बह रहा है, जो दिशाओं में उछलते हुए हाथियोंके मदजलोंसे सुवासित है । क्रीड़ा करते हुए नागराजों, दानवों और शत्रुओंका जिसमें निवास है, जो मधुओंसे लथपथ है, जिसमें धरतीकी धूल शान्त है, जिसमें इच्छुक प्रजाओंको अपना धन दिया गया है, जो बहती हुई हवासे प्रकम्पमान है, जिसके जलाशयोंमें कमलिनियोंकी कोई सीमा नहीं है, जहां भ्रमरोंसे आच्छन्न तथा परागसे यक्त सरोवरोंमें कौन सुर और असुर नहों तैरता, जो गंगाके तुषारकी तरह शीतल था, ऐसे उस वनको देखकर जितेन्द्रिय ऋषि ऋषभनाथ आकाशके आंगनसे उतरकर पत्ता-वहाँ शिलापर बैठे हुए हृदयमें प्रसन्न वह मनुष्य योनिसे उदासीन हो गये और सिद्धके समान शशिबिम्बके सदृश मलसे रहित शिवपदभूमिके लिए उत्सुक हो उठे ॥२५॥ २६ विविध पूजा विधियोंको करनेवाले और चमकते हुए वज्रके धारक ऐरावतगामी इन्द्रने फिर उनकी पूजा की। परमसिद्धोंको अपने मनमें धारण कर और शीघ्र ही पांच मुद्रियोंमें भरकर, जितने भी धूतं विलासिनियोंके समान कुटिल बाल थे, उन्हें उन्होंने उखाड़ दिया । संसारमें इस प्रकार कौन लोग धर्मका स्वयं विचार करते हैं। जो केश उखाड़े गये थे, उन्हें तमसमूहको नष्ट करनेवाले मणिपटलमें रखकर जनपदोंको मत्स्यमुद्रा नहीं दिखानेवाले क्षीरसमुद्र में इन्द्रने फेंक दिया। रतिसे क्रीड़ा करनेवाला मुकुट छोड़ दिया मानो कामदेवके शिखरका अग्रभाग फेंक दिया गया हो। मणिजड़ित कुण्डल छोड़ दिये गये मानो रवि और शशिके बिम्ब गिर गये हों। मोतियोंके हारने कंकण छोड़ दिया जैसे नीहारके साथ चन्द्रमा जीत लिया गया हो। क्षुरिकाके साथ कटिसूत्र छोड़ दिया गया मानो आकाशमें चमकती बिजली हो । अमूल्य वस्त्र छोड़ दिये गये जो शरीरके लिए अत्यन्त सुहावने लगते थे। संसारकी असारताका विचारकर पांच महाव्रतोंको चित्तमें धारण कर देहके भारस्वरूप अलंकारसे क्या ? व्रतके प्रभारसे उन्होंने अपनेको विभूषित किया। मोहजालकी तरह वस्त्रोंको छोड़कर वह शीघ्र ही दिगम्बर महामुनि हो गये। वसन्त माहके कृष्णपक्षकी नौंवीके दिन उत्तराषाढ़ नक्षत्रमें उन्होंने दो प्रकारका संयम अपने मनमें स्वीकार कर लिया। इन्द्र, अग्नि और यम अपने घर चले गये। नियमोंमें स्थित स्वामीकी प्रदक्षिणा कर और भी दूसरे लोग अपना माथा झुकाते हुए ( चले गये )। पत्नियां जिनकी ओर स्नेहभावसे देख रही हैं ऐसे चालीस सौ राजा तत्काल दीक्षित हो गये। अजयमल्ल वह मधुपुर पहुंचे। बाहुबलि भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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