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________________ ५. २१.८ ] हिन्दी अनुवाद ११३ सुनकर उत्पन्न हुई है करुणा जिन्हें ऐसे प्रचुर ज्ञानसे सम्पूर्ण देवने खेती करना, घोड़ा-हाथी- मेषमहिष- वृषभ और अरण्य आदि पशुओंकी रक्षा करना, पट, घट, भोजन, भाजन, रंजन और घर बनाने की विधि, सुन्दर पीठशय्या, कवच, हार, दोर, कंचन सहित केयूर, असि-मषि आदि कर्म जो जिस प्रकार थे, उसकी वैसी व्याख्या की । धत्ता - धरतीको अच्छी तरह धारण करनेवाले आदिपुरुष ब्रह्म वह परमेश्वर विश्वको ( जनों को ) सन्तुष्ट कर और भेजकर क्षत्रिय शासनका पालन करने लगते हैं । २० और भी अच्छे चरितवाले तथा कुलपथका कथन करनेवाले वणिक् और किसान कहे जाते हैं । धर्मंसे पतित तथा तरह-तरहके पशुवधको प्रकट करनेवाले जड़ चाण्डाल भी । लेखक, लुहार, कुम्हार, तेलो और चमार भी । जिन लोगोंने अपना जो कर्म प्रकाशित किया है, कुलदेव ॠषभने उन्हें वही घोषित कर दिया। पल्लव, सैन्धव ( सिन्धु ), कोंकण, टक्क, हीर, कीर, खस, केरल, अंग, कलिंग, जालन्धर, वत्स, यवन, कुरु, गुर्जर, वज्जर, द्रविड़, गौड, कर्णाटक, वराट, पारस, पारियात्र, पुन्नाट, सूर, सौराष्ट्र, विदेह, लाड, कोंग, वंग, मालव, पंचाल, मागध, जाट, भट, नेपाल, औण्ड्र, पुण्ड्र, हरि, कुरु, मंगाल, देवमातृक धान्य उत्पन्न करनेवाले, जलसहित धान्य उत्पन्न करनेवाले, साधारण ( दोनों प्रकारके ) अनूप और जंगली देश । पहाड़, वृक्षों और दुर्गे दुर्गम, धराको अधीन करनेवाले शवरों सहित अटवी देश । घत्ता - वृत्तियों और वनोंको धारण करनेवाले चारों ओरके पार्श्वभागोंसे रचित ग्रामों, उद्यानों, एक-दो कोसवाले क्षेत्रोंसे धरती शोभित है ॥२०॥ २१ भूमिके भूषण तथा इन्द्रको दी है आज्ञा जिन्होंने ऐसे पुरदेव जिनने चार प्रकारके गोपुर और द्वारवाले नगर और पुरोंकी रचना करवायी । नदियों और पर्वतोंसे दो ओरसे घिरे हुए खेड़े, पहाड़ोंसे घिरे हुए कव्वड ग्राम, गांवों सहित मण्डप, रत्नोंकी खदानवाले अपूर्व पट्टन समुद्रोंके तीर्थोंपर स्थित द्रोणमुख, पर्वतोंके शिखरोंपर स्थित संवाहन तथा अच्छी तरह निरूपित और सविनय सेवामें तत्पर वैराट प्रभृति जो खदानें हैं उनकी, राजाओं और इन्द्रोंको आनन्द १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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