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- ५.१३.१३] हिन्दी अनुवाद
१०५ पत्ता-क्रोध, मद, लोभ, मान और कामके साथ हर्षको छोड़ो, गुरु घोषित करते हैं कि इनके नाशके फलस्वरूप श्री होगी।
१२ आचार्य कहते हैं कि राजाका मित्र निरन्तर रूपमें एक देशान्तरमें रहते हुए शत्रु हो जाता है। राजाके द्वारा प्रेषित विविध रूप धारण करनेवाले गूढ़पुरुष उसके रहस्यका भेदन कर देते हैं। . गूढपुरुषोंको भी प्रतिगूढ पुरुषोंके द्वारा जानना चाहिए, और उनमें जो विरुद्ध हों उनको नष्ट कर
देना चाहिए । निर्दोषकालमें (राजाको) गमन करना चाहिए। प्रचुर अन्नकण, तृण और जलसे भरपूर महीतलमें ठहरना चाहिए। हीन अथवा समान व्यक्तिके साथ युद्ध करना चाहिए, शक्तिशालीसे दान देकर सन्धि करनी चहिए, दुर्गाश्रितके साथ भी सन्धि करनी चाहिए, मित्र होते हुए भी शत्रुत्वको न जानने दिया जाये। इस प्रकार अलभ्य देशमण्डल प्राप्त कर लिया जाता है। उसके परिरक्षित होनेपर अभिलषित फल किया जाये । प्रशस्त लोगोंको धन दिया जाये। उन्हें अठारह तीथं भी दिये जायें। तीर्थोंसे राज्य स्थिर रूपसे रखा जाता है, और राज्यालय नष्ट नहीं होता । स्वामी, अमात्य, राष्ट्र, धन, सुधि, बल और कहो सातवां शत्रुबलका नाश करनेवाला दुर्ग। हे पुत्र, जिस प्रकार यह सप्तांग राज्यक्षयको प्राप्त न हो इस प्रकार वसुमतीका पालन करना चाहिए।
___घत्ता-इस प्रकार चक्रवर्तीकी लक्ष्मीको धारण करनेवाले भरतको उसके अपने पिताने यह बात सिखायी, मानो सूर्यने कमलाकरको विकसित किया हो ॥१२॥
गुणरूपी मणियोंकी किरणोंके प्रसारभारसे शान्त हो गया है दुर्नयोंका अन्धकारसमूह जिसका, ऐसा भरत, कुबेर, पवन, यम, शशि, सूर्य, अग्नि और वरुणकी लीलाओंके समान लीला वाला हो गया। धर्म और अर्थमें कुशल तेजस्वी, हित-मित और मधुर बोलनेवाला, राजाओं द्वारा प्रशंसनीय, सज्जन, उत्साहसे परिपूर्ण क्रोध रहित पवित्र धीर, बलवान्, गम्भीर, बुद्धि और धैर्यका घर, समर्थ, जितेन्द्रिय, प्रत्युत्पन्नमति, विश्ववन्द्य, दूरदर्शी, अदीर्घसूत्री, पुरुषविशेषज्ञ, प्रसन्न, गुरुभक्त, स्थिर, स्मरणशील, पवित्र, व्रती, स्वच्छ, अकलुषितचित्त, अत्यन्त सुभग, वदान्य, मेधावी और सयाने, भारतके उस राजाका क्या वर्णन किया जाये ? उसके बाद सर्वार्थसिद्धि विमानसे आया वृषभसेन नामसे यशोवती देवीका दूसरा पुत्र हुआ, फिर और भी शत्रुका मदन करनेवाला-अनन्तविजय पुत्र हुआ। और भी अनन्तवीर्य, फिर अच्युत वीर-सुवीर मतवाले गजके समान भुजाओंवाला।
घत्ता-इस प्रकार उसके चरमशरीरी, अपराजित, पुण्यके प्रभावसे परिपूर्ण और गुणयुक्त सौ पुत्र उत्पन्न हुए ॥१३॥
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