________________
४. १०.१२]
हिन्दी अनुवाद
"भूमिको शोभा बढ़ानेवाले त्रिभुवननाथको कंगन सहित अपनी दोनों कन्याएं दो।" तब कच्छ और महाकच्छ राजाओंने घर जाकर, सिरसे चरणोंमें प्रमाण करते हुए, नाभेय (ऋषभ) को कामकी आलवाल ( क्यारी ) में उत्पन्न होनेवाली लताओंके समान वे सुन्दरियां दे दीं। परमेश्वरका विवाह प्रारम्भ हुआ। अश्व, गज और पक्षियोंके वाहनवाला सुरगण विवाहमें आया । कुसुमांजलि लिये हुए लोकपाल (विवाहमें ) आये। पुण्यसे मनोहर सुधी बान्धवजन आये। कुमारियोंके हाथमें अंगूठियां पहना दी गयीं, मानो पहला प्रेमांकुर फूटा हो। जिसमें गुनगुनाता हुआ चंचल भ्रमरसमूह घूम रहा है, और जिसमें विविध द्वारोंसे शोभा है, ऐसा मण्डप बनाया गया, माणिक्य और मोतियोंके गुच्छोंसे विस्फुरित, नव स्वर्णस्तम्भोंपर आधारित । चन्द्र चीनांशुकसे आच्छादित मानो धरतीरूपी देवीने मुकुट बांध लिया हो।
__ पत्ता-सघन किरणोंवाली, स्वच्छ इन्द्रनील मणियोंकी पंक्तियोंसे अलंकृत वह मण्डप ऐसा जान पड़ रहा था, मानो रविकिरणोंसे त्रस्त अन्धकारके लिए शरण-स्थल बना दिया गया हो ॥९॥
स्वर्णसे प्रसाधित विद्रुमसे शोभित वह ऐसा लगता है जैसे भूमिगत सन्ध्यामेघ हो। कहीं चाँदीकी दीवालोंसे ऐसा लगता है जैसे शरद्के मेघ निर्मित कर दिये गये हों, कहीं स्फटिक मणियोंसे उज्ज्वल क्रीड़ाभूमि है, मानो पवित्र अंगवाली गंगाकी तरंग हो, कहीं मोतियों द्वारा की गयी कान्ति है, मानो नक्षत्रोंसे युक्त आकाश-भाग हो। कहींपर हरे लाल मणियोंसे वरिष्ठ. वह इन्द्रधनुष मण्डलके समान है । अभिनव वृक्षोंके पल्लव-तोरणोंसे ऐसा लगता है कि वनोंने वसन्तका उत्सव मनाया हो। हवासे उड़ती हुई पताकाएं आकाशतलमें व्याप्त हैं, मनुष्योंके द्वारा आहत तूर्योंकी मंगलध्वनि हो रही है, पटहवादककी अंगुलीके ताडन, दक कुन्द कुन्दकके शब्द और डण्डेसे पटह इस प्रकार ताडित हुआ कि जिससे झंधोत्ति दोत्ति शब्द हुआ।
घत्ता-भंभा और भेरियोंके शब्दोंसे क्षुब्ध प्रभु पुण्यरूपी पवनसे प्रेरित होकर चले। अशेष त्रिभुवन आकर उस मण्डपके नीचे मिल गया ॥१०॥
११
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org