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________________ ४.५.१२] हिन्दी अनुवाद . शैशवकी क्रीडाशील जो लीलाएँ प्रभुने दिखायीं वे किसे अच्छी नहीं लगीं। विविध क्रीड़ाविलास रचनेवाले सुरवर कुमार उनके साथ खेलते हैं, जिन्होंने ( जिनने ) शरीरके तेजसे सूर्यबिम्बको पराजित कर दिया है, जिनका नितम्ब (कटि प्रदेश) धुंघरुओंकी मालासे अलंकृत है, जो कटिसूत्रसे रहित और धूल-धूसरित हैं, जो सहज उत्पन्न कपिल केशोंसे जटा-युक्त हैं, ऐसे ऋषभ बालकको, राजरानियों और देवोंकी इन्द्राणियोंने हाथोंहाथ लिया। जिसने भी उनका मुग्ध मुख देखा उसने अपने चिरसंचित पुण्यरत्नको जान लिया, और वह वहीं ( मुखकमलपर ) निबद्ध होकर नवकमलोंपर लुब्ध भ्रमरकी भाँति रह गया। किसीने उस हंसगामीको हंसाया, किसीने उन्हें भव्य स्वामी कहा। किसीने उन्हें कोई खिलोना दिया-कपि, कीर, मोर और कोई दूसरा सुन्दर खिलौना। कोई देव मुर्गा बन गया, कोई श्रेष्ठ अश्व और कोई दिव्य गज। कोई मेष और महिष । कोई भुजबलमें श्रेष्ठ मल्ल होकर ताल ठोकता है, सोते हुए बालकको कोई कानोंको मधुर लगनेवाली लोरी गाकर झुलाता है। घत्ता-हो-हो, तुम्हारी जय हो, सुखसे सोओ, तुम्हें प्रणाम करता हुआ भूतगण प्रसन्न रहता है, ऋद्धि प्राप्त करता है, और पापके मलसे किसीका भी मन मलिन नहीं होता ।।४॥ धूलसे धूसरित, कटिमें किंकिणियोंका स्वरवाला और अनुपम लीलावाला बालक क्रीड़ा करता है, चलते-चलते जो कुछ भी पकड़ लेता है, उसे इन्द्र भी अपनी पूरी शक्तिसे नहीं छुड़ा पाता। उनकी छोटी-सी अंगुली पकड़नेके लिए धरणेन्द्र और चन्द्र भी समर्थ नहीं हो पाते। मेदिनी और महीधरको कंपानेवाले जिनेश्वरके बलका कौन आकलन कर सकता है ? वह उनके निश्वाससे ही उड़ जाता है, आकाशको लांघनेको शक्ति किसके पास है ? फिर चूडाकर्म हो जानेपर भली नववय प्रकट होनेपर सम्पूर्ण चन्द्रमण्डलके समान मुखवाले, मरुदेवी महासतीके पुत्र श्रेठ, देवांग वस्त्र धारण करनेवाले, चंचल विविध आभूषणोंसे युक्त, बालकके द्वारा भुजक्रीड़ासे दिग्गजको हिलानेवाले, चंचल हाथसे वेणुके अग्रभागसे आहत गेंद आकाशमें उछलती हुई ऐसी दिखाई देती है, मानो देवेन्द्रके घर जा रही हो। जीव रहित, परन्तु निर्दिष्ट मार्गवाला कोन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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