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________________ ४.३.१२] हिन्दी अनुवाद ७३ २ जिसका मूल समता और दम है, जिसकी यम नियमरूपी शाखाएं हैं। जिससे पुण्यरूपी फलोंका उद्गम होता है, ऐसा वह जिनरूपी कल्पवृक्ष, देवोंके अमृतसे सींचा गया और पुण्यसे बढ़ता हुआ शोभित है। उनके शरीरमें नित्य निर्मलता है, और मन्दराचलको धारण करनेकी अनन्त शक्ति है; स्वेद बिन्दुओंसे रहित, प्रचुर सुरभि है; जिनका रुधिर भी हार और नीहारकी तरह गौर वर्ण है। श्रेष्ठ वज्रवृषभनाराच संहनन नामका प्रबल शक्तिवाला उनका पहला शरीरसंघटन है। जहां-जहां भी देखो वहाँ शोभानिधान, उनका दूसरा समचतुरस्र संस्थान था। जगमें श्रेष्ठ सुरूप और सुलक्षणत्व, प्रिय-हितमित वचन और एकनिष्ठ चित्त। जिनके जन्मके समयसे हो निबद्ध प्रसिद्ध दस अतिशय हैं। मानो उन्होंने पुरुषरूपके परिमाणको प्राप्त कर लिया है ( उसकी उच्चताको पा लिया है ), और विधाताके निर्माणका अभ्यास विशेष उन्हें सिद्ध हो गया है। पत्ता-निरुपम परम जिनेन्द्रके समान भुवनतलमें कोई नहीं है, उनके लिए चन्द्रमा, दिनकर, मन्दर और समुद्रका क्या उपमान हूँ ? ॥२॥ गुणगणसे युक्त, दुर्नयोंसे रहित, जनमनको सन्तुष्ट करनेवाले जिनका वर्णन कौन कर सकता है ? जो चन्द्रमा है वह उनकी कान्तिपिण्डका विचार करता हुआ कलंकित और खण्डित हो गया। सूर्य उनके तेजसे जीता जाकर मानो आकाशमें घूमकर अस्तको प्राप्त होता है। जो समेरुपर्वत है वह उनका स्नानपीठ है, जो धरतीमण्डल है, उसे उन्होंने ग्रहण कर लिया। जो जग है, वह उनके यशके प्रसारका स्थान है; जो नभ है, वह उनके ज्ञानका प्रमाण है; जो समुद्र है, वह उनके शरीरके प्रक्षालनका कुण्ड है। जो कामदेव है, उसने डरसे अपना धनुष छोड़ दिया है। जो ऐरावत है, वह मदान्ध वाहन है। सिंह भी उनके सिंहासनसे बांध दिया गया है। कामधेनु पशु है, जिसने अपने हितके कारणको नष्ट कर दिया है, जो बाघ है, वह भी पापी जीव है, जो कल्पवृक्ष है वह भी काष्ठ ( कष्ट ) कहा जाता है । देवके समान कोई भी दिखाई नहीं दिया। घत्ता-जहाँ देव, अनुचर, अप्सराएँ, दासियां और इन्द्र घरमें काम करनेवाले हैं, और त्रिभुवन ही परमेश्वरका कुटुम्ब है, वहां मैं उनके विलासका क्या वर्णन करूं ? ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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