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________________ २. ९. १०] हिन्दी अनुवाद और जो कैंचीसे न काटे जा सकें ऐसे सूक्ष्म मेषके बच्चोंके रोमोंसे उसे भरा जाये। जब वह भर जाये तो उसे गिनो मत । सौ सालमें एक बाल निकालो, जब वह रोमराजि समाप्त हो जाये तब निश्चयसे एक व्यवहार पल्य पूरा होता है। उन असंख्य पल्योंसे एक उद्धारपल्य बनता है, और असंख्यात उद्धारपल्योंसे एक द्वीप समुद्र प्रमाण काल बनता है। उसमें भी असंख्यातका गुणा करनेपर एक अद्धा पल्य बनता है जो जन्म, स्थिति, आयु और प्रमाणका धारक होता है । दस करोड़ पल्योंके बराबर घटिकाओंके समाप्त होनेपर एक सागर प्रमाण समय होता है। पत्ता-इतने ही सागरोंके बराबर कालचक्रको मैंने लक्षित किया है, लो मैं वैसा ही बताता हूँ कि जैसा केवलज्ञानीने कहा है ॥७॥ सुषमा-सुषमा एक और सुषमा, सुषमा-दुखमा फिर दुखमा-सुषमा, दुखमा, अति दुखमा भगवान् महावीरके द्वारा विज्ञप्त, ये छह काल विभाजित हैं। यह कालचक्र क्रमशः ऋद्धिको घटाता बढ़ाता हानि और वृद्धिको करता हुआ लोकमें घूम रहा है। जब बाहुबल, वैभव, मनुष्य, शरीर, धर्म, ज्ञान, गाम्म और धैर्य बढ़ते हैं, तो उत्सर्पिणी काल होता है, और जब ये चीजें घटती हैं तब अवसर्पिणी काल होता है। देवताओंको चकित करनेवाले इन कालोंका समय, क्रमशः तीन, चार और दो कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण होता है, तीनों काल तीन प्रकारसे विभक्त हैं। इनमें दस प्रकारके कल्पवृक्षोंसे प्रसाधित क्षेत्र हैं। मनुष्यके शरीर नीरोग दिखाई देते हैं। इच्छाके अनुसार भोगोंको प्राप्त करते हैं। मनुष्योंके शरीर क्रमशः छह, चार और दो हजार धनुष प्रमाण होते हैं, उनका आहार क्रमशः बेर, बहेड़ा और आंवलेकी मात्राके बराबर होता है। उनकी आयु क्रमशः तीन, दो और एक पल्यकी होती है। शरीर रत्नों और अलंकारोंसे विभूषित होते हैं । इस प्रकार भोगभूमिके चिह्न प्रकट हुए-उत्तम, मध्यम और जघन्य। पत्ता-जहां कोई शत्रु नहीं होता। सभी मित्र हैं। सिंह हाथीके साथ रहता है, तथा लोगोंका लावण्य रंग और विलाससे परिपूर्ण वय और यौवन नष्ट नहीं होते ॥८॥ तीसरा काल बीतनेपर, जब पल्योपमके आठवें भाग बराबर समय रह गया, तब प्रतिश्रुति नामका दीर्घायुवाला कुलकर उत्पन्न हुआ, स्थिर यशवाला जो अठारह सौ धनुष प्रमाण शरीरका था उसकी आयु पल्योपमके दसवें भागके बराबर थी। फिर तेरह सौ धनुष प्रमाण शरीरवाला अमितायु और मन्थर गतिवाला सन्मति नामका कुलकर उत्पन्न हुआ। फिर कामदेवके समान तथा आठ सौ धनुष प्रमाण शरीरवाला अडड बराबर आयुसे युक्त प्राणियोंका कल्याण करनेवाला क्षेमंकर कुलकर उत्पन्न हुआ। फिर सात सौ पचहत्तर धनुष प्रमाण शरीरवाला एक और मनु हुआ, उसका नाम क्षेमन्धर था और वह दिग्गज था, जो एक तुट्य वर्ष प्रमाण जीवित रहकर मर गया। फिर जिसका शरीर सात सौ पचास धनुष प्रमाण कहा जाता है ऐसे सीमंकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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