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४५८
-कत्तिगेयाणुप्पेक्खा
३७१
३०५
तत्त्वार्थसूत्र [वृत्ति ९-६] [आप्तमीमांसा १०८] [आलापपद्धति ९]
१८७ १६०, १९१
१२३
नासाग्रे निश्चलं वापि नास्ति अस्य किंचन निरपेक्षा नया मिथ्या निर्विशेष हि सामान्य निषादं कुञ्जरो वापि निषादर्षभगान्धार निःकलः परमात्माह निःशल्यो व्रती नृणामुरसि मन्द्रस्तु नेत्रद्वन्द्वे श्रवणयुगले नेह नानास्ति
१२३
[अमरकोश ६-१] [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ४०-३०११] [तत्त्वार्थसूत्र ७-१८]
३७४ ३०३ १२३
३७५
१६६
२८७ २७७
[शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ३०-१३] [बृहदारण्यक ४-४-१९, सर्व वै खल्विदं ब्रह्म नेह नानास्ति किंचन प्र. मा. २-१२] [वसुनन्दि, श्रावकाचार ३०४ ] [वसुनन्दि, श्रावकाचार २८२] [वसुनन्दि, श्रावकाचार २८७ ] गोम्मटसार [जी. कां. १५८] नेमिचन्द्र, [गोम्मटसार जी. कां. १२०] गोम्मटसार [जी० का० ११९] [? शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ३८-३८]
२७७
८७
३
३७२
१२३
३७३ २६२ २६३
[शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ३७-५५] [रत्नकरण्डश्रावकाचार १०७] [वसुनन्दि, श्रावकाचार २२५] [ वसुनन्दि, श्रावकाचार ३३९] गोम्मटसार [जी० कां० १४४ ] [पञ्चसंग्रह १-१९७]
३
पक्खालिदूण पत्तं पक्खालिदूण वयणं पचूसे उद्वित्ता पजत्तमणुस्साणं तिचउत्थो पजत्तस्स य उदये पजत्ती पट्ठवणं जुगवं पञ्चगुरुनमस्कारलक्षणं पञ्चमश्च मुखे शेयस्तालु पाचवर्णमयीं विद्या पश्चानां पापानामलं किया पडिगहमुच्चट्ठाणं पडिजग्गणेहिं तणुजोय पढमुषसमसहिदाए पढमे दंडं कुणइ पढमे पढम णियमा पढमे सत्त ति छक्क पणतीस सोल छप्पण पत्तस्स दायगस्स पत्तं णियघरदारे पदस्थं मत्रवाक्यस्थं पदान्यालम्ब्य पुण्यानि परद्रव्येषु सर्वेषु परस्परोपग्रहो जीवानाम् परे केवलिनः परे मोक्षहेतू पर्वण्यष्टम्यां च ज्ञातव्यः पन्वेसु इत्थिसेवा पंचवणं कोडीणं
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२१८
१०९ २७३, ३७०
त्रैलोक्यसार [ २०१] [द्रव्यसंग्रह ४९] [भगवती आराधना २२१] [वसुनन्दि, श्रावकाचार २२६ ]
३३४
[ज्ञानार्णव ३८-१]
३७०
३२८
१४५ ३५८
[तत्त्वार्थ ] सूत्रे [५-२१] [ तत्त्वार्थसूत्र ९-३८ ] [तत्त्वार्थसूत्र ९-२९] समन्तभद्रखामि, [रत्नकरण्डश्रावकाचार १०६ ] [वसुनन्दि, श्रावकाचार २१३]
३५८
२६२ २४५ ३०८
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