________________
४२४
- कत्तिगेयाणुप्पेक्खा
[गा० ३०२१२. धम्माणुवेक्खा जो जाणदि पञ्चक्खं तियाल-गुण-पज्जएहिँ संजुत्तं । लोयालोयं सयलं सो संवाहू हवे देवो ॥ ३०२ ॥ जदि ण हवदि सवण्हू ता को जाणदि अदिदियं अत्थं । इंदिय-णाणं ण मुणदि थूलं पि' असेस-पजायं ॥ ३०३ ॥ तेणुवइट्ठो धम्मो संगासत्ताण तह असंगाणं। पढमो बारह-भेओ दह-भेओ भासिओ बिदिओ ॥ ३०४ ॥ सम्मइंसण-सुद्धो रहिओ मजाइ-थूल-दोसेहिं । वय-धारी सामाइउँ पञ्च-वई पासुयाँहारी ॥ ३०५॥ राई-भोयण-विरओ मेहुण-सारंभ-संग-चत्तो य । कजाणुमोय-विरओ उद्दिट्टाहार-विरदो य ॥ ३०६ ॥ चदु-गदि-भवो सण्णी सुविसुद्धो जग्गमाण-पजेत्तो। संसार-तडे णियंडो गाणी पावेइ सम्मत्तं ॥ ३०७ ॥ सत्तहं पयडीणं उवसमदो होदि उवसमं सम्म। खयदो ये होदि खइयं केवलि-मूले मणूसस्स ॥ ३०८ ॥ अणउदयादो छण्हं सजाइ-रूवेण उदयमाणाणं । सम्मत्त-कम्म-उँदये खयउयसमियं हवे सम्मं ॥ ३०९ ॥ गिण्हदि मुंचदि जीवो वे सम्मत्ते असंख-वाराओ। पढम-कसाय-विणासं देस-वयं कुणदि उक्कस्सं ॥ ३१ ॥ जो तच्चमणेयंतं णियमा सहहदि सत्त-भंगेहिं । लोयाण पण्ह-वैसदो ववहार-पवत्तणटुं च ॥ ३११ ॥ जो आयरेण मण्णेदि जीवाजीवादि णव-विहं अत्थं ।
सुद-णाणेण णएहि य सो सहिट्ठी हवे सुद्धो ॥ ३१२ ॥ १म सव्वण्ड, ग सव्वण्ह। २ ग अदंदियं । ३ स वि। ४ ग तेणवइट्ठो। ५ लमसग दसमेओ। ६ मस वयधारी सामइओ, ग वयधरी सामाईओ (ल सामाईउ)। ७ लसग पासुभाहारी, म फासुआहारी। ८ब चउगइ, मग चउर्गाद। ९ग पजंतो। १० बग नियडो। ११ ब सत्तण्णं । १२ ग इ होइ खईयं (ब क्खइयं)। १३ लग पणुसस्य, लस मणुसस्स। १४ बम अणु। १५ ब सम्मत्सपयहिउदये। १६ बग क्खय। १७ ब मुञ्चदि। १८ सग वसादो। १९ म मुणदि, ग मनदि। २०ब जीवाइ। २१ बम सुभ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org