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४१४ - कत्तिगेयाणुष्पेक्खा
[गा० १८८जीवो हवेई कत्ता सबकम्माणि कुव्वदे जम्हा। कालाइ-लद्धि-जुत्तो संसारं कुणइ मोक्खं च ॥ १८८॥ जीवो वि हवइ भुत्ता कम्म-फलं सो वि भुंजदे जम्हा। कम्म-विवायं विविहं सो वि य भुंजेदि संसारे ॥ १८९ ॥ जीवो वि हवे पावं अइ-तिव-कसाय-परिणदो णिचं । जीवो वि हवइ पुण्णं उवसम-भावेण संजुत्तो ॥ १९० ॥ रयणत्तय-संजुत्तो जीवो वि हवेइ उत्तमं तित्थं । संसारं तरइ जदो रयणत्तय-दिव-णावाएं ॥ १९१ ॥ जीवा हवंति तिविहा बहिरप्पा तह य अंतरप्पा य । परमप्पा वि य दुविहा अरहंता तह य सिद्धा य ॥ १९२ ॥ मिच्छत्त-परिणदप्पा तिव-कसाएण सुढे आविट्ठो। जीवं देहं एकं मण्णंतो होदि बहिरप्पा ॥ १९३ ॥ जे जिण-वयणे कुसला भेयं जाणंति जीव-देहाणं । णिज्जिय-दुट्टट्ठ-मया अंतरप्पा य ते तिविहा ॥ १९४ ॥ पंच-महत्वय-जुत्ता धम्मे सुक्के वि संठिदी णिचं । णिज्जिय-सयल-पमाया उक्किा अंतरा होंति ॥ १९५ ॥ सावय-गुणेहिं जुत्ता पमत्त-विरदा य मज्झिमा होति । जिण-वयणे अणुरत्ता उवसम-सीला महासत्ता ॥ १९६ ॥ अविरैय-सम्माँदिट्ठी होंति जहण्णा जिणिर्द-पय-भत्ता । अप्पाणं जिंदंता गुण-गहणे सुटू अणुरत्ता ॥ १९७ ॥ ससरीरा अरहंता केवल-णाणेण मुणिय-सयलत्था। णाण-सरीरा सिद्धा सबुत्तम-सुक्ख-संपत्ता ॥ १९८ ॥ णीसेस-कम्म-णासे अप्प-सहावेण जा समुप्पत्ती।
कम्मज-भाव-खए वि य सा वि य पत्ती परा होदि ॥ १९९ ॥ - १ म हवेदि। २ लमस कुणदि, ग कुणद। ३ ब सो चिय। ४ लमसग हवइ । ५ लमसग जीवो हवेइ। ६ ब नावाए। ७ग जीवो। ८ब तिवहा । ९ बम सुट्ठ, ल कसाएटू, स कसाएसु सुद्ध, ग कसाएसुट्रियाविट्ठो। १० स भेदं (?)। ११ [अंतरभप्पा]। १२ लसग संठिया । १३ स भविरद। १४ ब सम्माइट्टी। १५ ब जिण्णिद, ग जिणंद। १६ म सुद्ध। १७ लग सौक्ख । १८ लमसग णिस्सेस। १९ म मुत्ती।
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