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४१२ - कत्तिगेयाणुप्पेक्खा -
[गा० १६४सब-जहण्णं आऊ लद्धि-अपुण्णाणे सब-जीवाणं । मज्झिम-हीण-महुत्तं पज्जत्ति-जुदाण णिक्किटुं॥ १६४ ॥ देवाणं णारयाणं सायर-संखा हवंति तेतीसा। उक्किटुं च जहण्णं वासाणं दस सहस्साणि ॥ १६५ ॥ अंगुल-असंख-भागो एयक्ख-चउक्ख-देह-परिमाणं ।। जोयणे-सहस्स-महियं पउमं उक्कस्सयं जाण ॥ १६६ ॥ वारस-जोयण संखो कोस-तियं गोभियों समुहिट्ठा। भमरो जोयणमेगं सहस्सै समुच्छिमो मच्छो ॥ १६७ ॥ पंच-सया धणु-छेही सत्तम-णरए हवंति णारइयाँ। तत्तो उस्सेहेण य अद्धद्धा होंति उवरुवरि ॥ १६८॥ असुराणं पणवीसं सेसं णव-भावणा य दह-दंडं। वितर-देवाण तहा जोइसिया सत्त-धणु-देहा ॥ १६९ ॥ दुग-दुग-चदु-चदु-दुग-दुग-कप्प-सुराणं सरीर-परिमाणं । सत्तच्छं-पंच-हत्था चउरो अद्धद्ध-हीणा य ॥ १७ ॥ हिडिम-मज्झिम-उवरिम-गेवंजे तह विमाण-चउदसए । अद्ध-जुदा वे" हत्था हीणं अद्धद्धयं उवरिं ॥ १७१ ॥ अवसप्पिणीए पढमे काले मणुया ति-कोस-उच्छेहा। छट्ठस्स वि अवसाणे हत्थ-पमाणा विवत्था य ॥ १७२ ॥ सब-जहण्णो देहो लैंद्धि-अपुण्णाण सब-जीवाणं। अंगुल-असंख-भागो अणेय-भेओ हवे सो वि ॥ १७३ ॥ वि-ति-चउ-पंचक्खाणं जहण्ण-देहो हवेइ पुण्णाणं । अंगुल-असंख-भागो संख-गुणो सो वि उवरुवार" ॥ १७४ ॥ अणुरीयं "कुंथो मच्छी काणा य सालिसित्थो य ।
पज्जत्ताण तसाणं जहण्ण-देहो विणिहिट्ठो ॥ १७५ ॥ १ ब भाउ, म आउं, ग आयु । २ लमसग - यपुण्णाण । ३ लमग मुहुत्तं । ४ब निकिट्ठ । ५ ग देवाणं । ६ ग तेत्तीसा। ७ बाउसं । अंगुल इत्यादि। ८ल एगक्ख -। ९ब जोइण। १०ब जोइण। ११ब कोस । १२ लमसग गुब्भिया। १३ ब जोइणमेकं । १४ लग सहस्सं, म सहस्सा। १५ लमसग समुच्छिदो। १६ ब पंचसधणुच्छेहा (?)। १७ लमग जेरइया । १८ ब हुंति । १९ ग जोयसिया। २० ग सत्तचपंच, [सत्तछहपंच ? ]। २१ ब गेवजे, म गेविजे। २२ [?]. २३ म उवस। २४ म लद्धियपुण्णाण (?)। २५ ग उवरुवरि । २६ ब अण्णुधरीयं, लम आणुध, स आणुद्ध , ग अणुध। २७ लग कुंथुमच्छा, मस कुंथं (?)। २८ ब देहप्रमाणं । लोय इत्यादि।
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